साम - दाम - भेद - दण्ड
सर्वोत्तम उपाय राजनीति में
बतलाया है साम ,
लेकिन इस उपाय से
अब कहाँ बनते हैं काम !
साम वहाँ अपनाया जाता ,
जहाँ समझदारी हो ,
वहाँ भला किस काम का
जहाँ समझ ही भारी हो !
दाम को बताया गया दूसरा उपाय ,
घर बुलाओ किसी को पीने चाय ,
दे दो उसे मुंह माँगा दाम ,
कौन रोक सकता है फिर आपका काम !
यूँ तो दाम से ही बन जाते हैं काम ,
न बने तो तनिक भी न कीजिये खेद ,
बदलिये दल और निकालिये काम ,
बचाइये दाम और दीजिये भेद |
चौथे उपाय की तो बात ही न कीजिये
दण्ड कौन भला राजनेताओं को देता है !
कभी चले भी जाएँ अगर स्पेशल जेल ,
तो प्रशासन उन्हें तमाम सुविधाएँ देता है |
"प्रवेश"
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