पिता हूँ मैं !
बचपन में बहन की हत्या का
कारण बना दिया मुझको ,
कोई जुर्म नहीं किया,
मुजरिम अकारण बना दिया मुझको |
दादी माँ को नारी होकर
पोती से है रोष बड़ा ,
इसमें मेरा, पिताजी और
दादाजी का दोष है क्या ?
बड़ा हुआ तो दहेज़ का झोला
मेरे कंधे पर टांग दिया,
जो बड़ी बहन को दिया,
वही छोटी ने भी मांग लिया |
दिन भर मेहनत - मजदूरी से
जो भी कमाकर लाता हूँ ,
एक निवाला कम खाता हूँ ,
पर बच्चों को पढ़ता हूँ |
बच्चों की कलम - दावात की खातिर
एक चाय नहीं पीता हूँ मैं ,
बाकी समाज से गिला नहीं,
कवियों से उपेक्षित पिता हूँ मैं |
जब बच्चे तकलीफ में होते हैं,
मैं भी तकलीफ में होता हूँ ,
माँ तो आँसू बहा ले लेकिन
मैं दिल ही दिल में रोता हूँ |
ये बच्चे जीते हैं मुझमे ,
इन बच्चों में जीता हूँ मैं ,
बाकी समाज से गिला नहीं,
कवियों से उपेक्षित पिता हूँ मैं |
कवियों को लगता है मुझे
बच्चों और समाज की फ़िक्र नहीं,
इसीलिए किसी रचना में,
मेरा कोई जिक्र नहीं |
बच्चों और समाज की चिंता में
भूसे की जलती चिता हूँ मैं,
बाकी समाज से गिला नहीं,
कवियों से उपेक्षित पिता हूँ मैं |
"प्रवेश"
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