Monday, June 10, 2019

प्रधानपति

ज्योतिषी ने गौर से, मेरी हथेली को देखा है
राजयोग की एक भी, यहाँ न कोई रेखा है |

नेता मैं न बन पाऊँगा, ये बात मैंने जान ली है
नेतागिरी करनी मुझे, ये बात मैंने ठान ली है |

नेता बनना है तो करनी दोस्ती सरपंच से
मैं भाग्य की रेखा बदल दूंगा किसी प्रपंच से |

अगले चुनावों में पत्नी को टिकट दिलवाऊंगा मैं
वो प्रधान बनेगी तो, प्रधानपति बन जाऊंगा मैं |

कौन उसको पूछेगा, वो बस मुहर बनकर रहेगी
प्रधान की सारी जिम्मेदारी मेरे सर रहेगी |

छोटे - बड़े सबसे फिर अपनी जान और पहचान होगी
नेता बन जाऊंगा एक दिन, अपनी अलग ही शान होगी | ~ प्रवेश ~

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-06-2019) को "इंसानियत का रंग " (चर्चा अंक- 3364) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. श्रीमान जी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूं।

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