सर्वोपरि माँ
चाहे अमृत पान किया हो ,
चाहे खायी रसमलाई ,
सब कुछ ही बेकार है ,
जब तक माँ की डांट न खायी |
चाहे आलीशान भवन और
सारी सुख - सुविधा हो जुटाई,
सब कुछ ही बेकार है अगर
माँ के आँचल की छाँव न पाई |
चाहे दान किया हो लाखों ,
चाहे स्वर्ण नगरी हो बसाई ,
सब कुछ ही बेकार है अगर
माँ के मन को ठेस लगाईं |
चाहे चारों धाम नहाये ,
चाहे धूनी - भस्म रमाई ,
सब कुछ ही बेकार है अगर
माँ की क़द्र नहीं की भाई |
चाहे शीश नवाया प्रभु को ,
चाहे कीर्तन - भजन कराई ,
सब कुछ ही बेकार है ,
माँ को अगर न धोक लगाई |
" प्रवेश "
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