Saturday, June 30, 2018

मैं फेसबुक पर छा जाऊँ

दिल चाहता है
मेरा पड़ोसी कार ले आये
मैं उसके संग तस्वीर खिंचवाऊँ
फेसबुक पर लगा के उसको
लाइक और कमेंट्स कमाऊँ
मैं फेसबुक पर छा जाऊँ

दिल चाहता है
मेरी पड़ोसन सास से झगड़े
उसका बेटा वीडियो बनाये
मुझसे व्हाट्सप्प पर साझा करे
मैं उसको फेसबुक पे लगाऊँ
शेयर, लाइक - कमेंट्स कमाऊँ
मैं फेसबुक पर छा जाऊँ

दिल चाहता है
चुरा के किसी की कविता - शायरी
अपने नाम से चिपका डालूँ
बहुत खूब वाह - वाह कमाऊँ
थैंक यू थैंक यू लिखता जाऊँ
अपनी चोरी पर इतराऊँ
मैं फेसबुक पर छा जाऊँ

दिल चाहता है
एक पोस्ट मैं खुद भी लिख लूँ
नेताओं को गाली दे दूँ
पक्ष - विपक्ष के समर्थकों को
अपनी वाल पर लड़वाऊँ
मैं फेसबुक पर छा जाऊँ | ~ प्रवेश ~


Saturday, June 23, 2018

कोई अब कुछ ना कहेगा जानकर ,
जी में जो आता है बोले जा रहे हैं ॥

अद्यतन दिखने की झूठी आड़ में
सभ्यता को कहाँ वो ले जा रहे हैं ॥

मान - मर्यादा, अदब - तहजीब अब तो
कौड़ियों के भाव तोले जा रहे हैं ॥

लोभ - लालच - स्वार्थ आज इंसानियत का
जनाज़ा  शमशान को ले जा रहे हैं ॥

अब सफ़र कुर्सी तलक ज्यादा नहीं है
नये - नये ऱाज खोले जा रहे हैं ॥

ऊँचे आसन और ऊँचे भाषणों से
आवाम में जहर घोले जा रहे हैं ॥ " प्रवेश "

तेरा साथ होने भर से

मैं जानता हूँ
कि अक्सर ऐसा नहीं होता
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
जिंदगी आसान हो जायेगी ।

मैं जानता हूँ
वक़्त ग़ुलाम नहीं किसी का 
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मैं वक़्त को थाम लूँगा |

मैं जानता हूँ
जवानी सदा नहीं रहती
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मुझे बुढ़ापा नहीं आएगा |

मैं जानता हूँ
ज़रूरतें कभी ख़त्म नहीं होतीं
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मुझे किसी की ज़रूरत नहीं रहेगी | ~ प्रवेश ~ 

शायद फिर चुनाव हो रहा है

सड़क में गड्ढों का भराव हो रहा है ।
शायद फिर चुनाव हो रहा है ॥ 

मिला - जुला है इन दिनों शहर का माहौल । 
कहीं मिठाइयाँ बँट रही हैं , कहीं पथराव हो रहा है ॥ 

चूंने लगी है वायदों की टंकी । 
वायदों का खूब रिसाव हो रहा है ॥ 

मतदाता जो कल तक था कौड़ियों के भाव । 
वही आज मोतियों के भाव हो रहा है ॥ 

चल रही हैं कहीं गोलियां दनादन । 
ज्यों राजपूतों की शादी में ढुकाव हो रहा है ॥ 

शरीफ हैं, समझते नहीं मशीनी धाँधली । 
बस बटन दबाने का चाव हो रहा है ॥ 

मुश्किल हैं इन दिनों हाल - ए - दिल जानना । 
किसका - कब - किससे - कैसा लगाव हो रहा है ॥ 

चिरंजीवी माँगों का पुलिंदा लेकर । 
फिर पार्टी मुख्यालय का घेराव हो रहा है ॥ ~ प्रवेश ~ 




किलै परेशान छै

को छै , किलै परेशान छै
खुट - हाथ लै ठिकै छीं
देखणक लै बान छै
को छै , किलै परेशान छै

यो पछिन सोचिये
दुनी क्या कलि त्यहुणि
पैली क्वे काम कर
आजी त जवान छै
को छै , किलै परेशान छै

काम ठुल - छ्वट नि हुन
मन में लगन चहिंछ
अपण मनक एक
त्वी त पधान छै
को छै , किलै परेशान छै 

आज जो त्यर दगड़ नि छीं
भोव त्यरै गुण गहिल
त्वी उनरि  आस छै
त्वी उनरि   शान छै
को छै , किलै परेशान छै  | ~ प्रवेश ~

Friday, June 8, 2018

हर कोई शेर है, हर कोई बादशाह
हर कोई हर किसी को डरा चाहिए

शक़्ल असली छिपाते रहे उम्र भर
चेहरे पर एक और चेहरा चाहिए

दिन भटकते - भटकते निकल जाता है
सांझ ढलते ही इक आसरा चाहिए

सोचने वाले तो सोचते रह गए
इश्क़ करने को तो बावरा चाहिए

आजकल  की मोहब्बत खिलौनों सी है
एक टूटा नहीं के दूसरा चाहिए

आदमी को भरोसा किसी पर नहीं
हर जगह पर इसे कैमरा चाहिए ~ प्रवेश ~ 

Wednesday, February 7, 2018

पुता हुआ काँच

ज़न्नत में फरिश्तों ने
आईना टँगा दिया
अल्लाह ने देखा।
स्वर्ग में देवदूतों ने
दरपन टँगा दिया
भगवान ने देखा।
दोनों को चेहरा दिखा
एक - दूसरे का।
दरअसल दोनों ही
पुता हुआ काँच है। ~ प्रवेश ~

Monday, January 29, 2018

समर्थक

ये जो कट्टर समर्थक हैं
पक्ष और विपक्ष के
जो उतारू हैं
मरने - मारने पर
लड़ने वाले उन दो मेंडों की तरह हैं
जिनमें से जीतने वाला
देवता को चढे़गा
और हारने वाले की दावत
पूरा गाँव खायेगा । ~ प्रवेश ~

Monday, January 1, 2018

छपा कौन ?

ओ हो हो
छप चुके महाशय जी
कैसे हैं आप
कैसी हैं आपकी किताबें
कुछ बिकीं भी या
सब बाँटनी ही पड़ी
उपहार-स्वरूप !!
आपने कहा था ना
हमारा लिखा
कोई छापेगा नहीं
बस यूं ही काटते - चिपकाते रहेंगे
फेसबुक से ब्लॉग
ब्लॉग से वाट्सऐप
वाट्सऐप से फिर फेसबुक पर।
मगर सुनिये जनाब
आपको लिख के देते हैं
पूरे होश-ओ-हवास में,
जिस दिन धूल खा रही होंगी
आपकी किताबें
या जिस दिन खायी जा रही होंगी
उनमें जलेबी - पकौड़ियाँ
उस दिन भी चोरी हो रहा होगा
हमारा लिखा
फेसबुक से ब्लॉग
ब्लॉग से वाट्सऐप
वाट्सऐप से फिर फेसबुक पर,
लोग फिर से छप रहे होंगे
किताबें बाँटने के लिए
हमारा लिखा अपने नाम करके।
पर जरा सोचो
छपा कौन ? ~ प्रवेश ~