Sunday, September 15, 2019

चुपचाप चालान भर ले

तुझे किसने हक़ दिया
तू अपने हक़ की बात कर ले?
जेब में लाईसेंस नहीं है
चुपचाप चालान भर ले।

मौत के कुएं में 
गाड़ी चलाना आसान है
गर सड़क पर आ गया तो
आफ़त में जान है।
हजार जुर्माना है तो
तू आधे का इंतजाम कर ले 
जेब में लाईसेंस नहीं है 
चुपचाप चालान भर ले।

सड़क पर जो दिख रहा है
मत उसे गड्ढा समझ तू
कार्य प्रगति पर है प्यारे
कार्य का हिस्सा समझ तू।
मानकर इसको चुनौती
हिम्मत से पार कर ले
जेब में लाईसेंस नहीं है 
चुपचाप चालान भर ले।

मत समझ चालान 
तेरी हैसियत से ज्यादा भारी
कह रही सरकार
उसको है तुम्हारी जान प्यारी
अपने शुभचिंतक की
बात का तू मान धर ले
जेब में लाईसेंस नहीं है 
चुपचाप चालान भर ले। ~प्रवेश~



Monday, September 9, 2019

चुनाव

आईने के सामने 
अभ्यास चल रहा है

कैसे छिपाना है 
चेहरे का ताव ।
कैसे लाना है 
सेवक का भाव ।
कैसे बदला जाए 
बोलने का ढंग ।
कैसे चढ़ाया जाए 
हमदर्दी का रंग ।

लगाया जा रहा है हिसाब

किसके सामने 
कितना झुका जाय ।
किसके घर पर 
कितना रुका जाय ।
कौन मान जायेगा 
चुपड़ी बात से ।
कौन अपना लेगा 
केवल जात से ।

किसको नोट देने हैं
किसकी कमजोरी दारू है ।
कौन अपना होकर भी
धोखा देने को उतारू है ।

अपनी गरज पर गधे को भी
पिता कहना उनका स्वभाव है ।
इस सारे नाटक का कारण
आने वाला चुनाव है। ~प्रवेश~

Saturday, June 15, 2019

भरते ज़ख्मों को उधेड़ लेते हो
किसी के ज़ख्मों को सीने के क़ाबिल ना हुए
तुम समझते हो समंदर ख़ुद को
डुबो सकते हो मगर पीने के क़ाबिल ना हुए
दौलत कमा ली बहुत, आज भी तुम
सर उठाकर जीने के क़ाबिल ना हुए | ~प्रवेश~

Wednesday, June 12, 2019

कुछ दोस्तों के लिए

आईना अपने घर में कैसे लगा लेते हो
लगा भी लिया तो नज़र कैसे मिला लेते हो

तुम खुद भी जानते हो अपनी फ़रेबी फ़ितरत को
तुम तो वो हो जो ख़ुद को भी दग़ा देते हो

तुम्हारी ग़लती का एहसास करा दे कोई
ज़ोर से बोलकर उसको ही डरा देते हो

ज़मीर बेचकर जो दौलत कमा रहे हो तुम
बताओ तो सही किस - किस को हिस्सा देते हो | ~ प्रवेश ~


Monday, June 10, 2019

प्रधानपति

ज्योतिषी ने गौर से, मेरी हथेली को देखा है
राजयोग की एक भी, यहाँ न कोई रेखा है |

नेता मैं न बन पाऊँगा, ये बात मैंने जान ली है
नेतागिरी करनी मुझे, ये बात मैंने ठान ली है |

नेता बनना है तो करनी दोस्ती सरपंच से
मैं भाग्य की रेखा बदल दूंगा किसी प्रपंच से |

अगले चुनावों में पत्नी को टिकट दिलवाऊंगा मैं
वो प्रधान बनेगी तो, प्रधानपति बन जाऊंगा मैं |

कौन उसको पूछेगा, वो बस मुहर बनकर रहेगी
प्रधान की सारी जिम्मेदारी मेरे सर रहेगी |

छोटे - बड़े सबसे फिर अपनी जान और पहचान होगी
नेता बन जाऊंगा एक दिन, अपनी अलग ही शान होगी | ~ प्रवेश ~

Wednesday, May 15, 2019

गाँव के लिए

मैं कुछ करना चाहता हूँ
अपने गाँव के लिए
अपने पहाड़ के लिए |
मैं चाहता हूँ
हर बच्चा पहुँच सके स्कूल
हर हाथ को काम हो
हर मरीज को उपलब्ध हो दवा
जंगलों की आग बुझे
शुद्ध हो हवा |
मैं चाहता हूँ कि
गाँव शहर से पिछड़ा न रहे
गाँव और शहर का कन्धे से कन्धा मिले
छोटा - बड़ा जैसा भी हो
हर आदमी को धन्धा मिले |
मुझे लौटना नहीं है गाँव
क्योंकि वहाँ उपलब्ध नहीं है
जो मैं चाहता हूँ,
फिर भी मैं चाहता हूँ
कि फेसबुक पर
एक कविता पोस्ट करूँ
और वो हो जाए
जो मैं चाहता हूँ गाँव में | ~ प्रवेश ~
( शहर न छोड़ते हुए
गाँव का ख़यालों में भला चाहने वालों को समर्पित )