वायदों की गंध तो फैली हुई है दूर तक ।
पहुँच पाती है कहाँ कोई योजना मजबूर तक !!
आ गया है खेत तक खादी में लिपटा अजनबी ।
आज उसकी पहुँच जाने क्यों हुई मजदूर तक !!
आज उसको झोंपड़ों की याद फिर से आ गयी ।
आशियाँ जिसका है जन्नत , शाम - ए - मंजिल हूर तक ॥
चूसता है आम कहकर आदमी को ख़ास ही ।
हो गया है आम अब बदनाम से मशहूर तक ॥
कोई जलने के लिए , कोई जलाने के लिए ।
जल रहा है आदमी धूप से तंदूर तक ॥ ~ प्रवेश ~
पहुँच पाती है कहाँ कोई योजना मजबूर तक !!
आ गया है खेत तक खादी में लिपटा अजनबी ।
आज उसकी पहुँच जाने क्यों हुई मजदूर तक !!
आज उसको झोंपड़ों की याद फिर से आ गयी ।
आशियाँ जिसका है जन्नत , शाम - ए - मंजिल हूर तक ॥
चूसता है आम कहकर आदमी को ख़ास ही ।
हो गया है आम अब बदनाम से मशहूर तक ॥
कोई जलने के लिए , कोई जलाने के लिए ।
जल रहा है आदमी धूप से तंदूर तक ॥ ~ प्रवेश ~