हालात आजकल
वर्तमान परिस्थितियों से सम्बंधित रचनाएँ
Wednesday, October 5, 2022
छोटी सी कविता - साँझ ढले
छोटी सी कविता - दौड़
हर माता - पिता चाहते हैं
उनकी संतान आगे निकले
हर दौड़ में उनसे,
सिवाय एक दौड़ के
दुनिया छोड़ने की दौड़ !! ~ प्रवेश ~
Friday, July 15, 2022
Tuesday, September 28, 2021
सूर्यदेव का दोष
सड़क जो बनी बरसात के बाद
रही साल भर चकाचक
खूब बटोरी वाहवाही
अगली बारिश आने तक।
अब फिर से बारिश आयी है
अपने संग जाने क्या लायी है
तारकोल से कंकड़ बिछड़ गए
कंकड़ -कंकड़ छितरायी है।
जो सड़क धूप में सही रही
बारिश आने पर टूटी है
ऐसा प्रकृति ने कोप किया
जनता की किस्मत फूटी है।
जनता का अकारण रोष है
सड़क टूटने में सारा
सूर्यदेव का दोष है।
न तपता सूरज तेजी से
न भाप समंदर से उठती
न बादल बनते- वर्षा होती
न बारिश में सड़क लुटती। ~प्रवेश~
Thursday, July 15, 2021
जैसा हूँ वैसा रहने दो
मुझको मुझ जैसा रहने दो।।
तुम सा तो मैं हो न सकूंगा।
अपना मशविरा रहने दो।।
दर्द का सबब भूल न जाऊँ।
असल चेहरे दिख जायेंगे।
जागेगा तो चीख़ उठेगा।
खुशियों से हम मर जायेंगे।
Thursday, May 13, 2021
धर यमराज भेष, फैली है देस - बिदेस, कोरोना के रूप में मुसीबत बड़ी आयी है।
विषम समय - काल, थमी है जीवन की चाल, आज मानवता की परीक्षा की घड़ी आयी है।
आत्मनियंत्रण - संयम - सावधानी को परखने मनुज पे दुःखों की झड़ी आयी है।
जैसे बीता अच्छा कल, बीत जायेगा ये पल, मानव जाति कई विपदाओं से लड़ी आयी है।
जंगलों को काट के शहर बसाने के बाद, प्राणवायु के लिए तरसता है आदमी।
त्याग दिये गाँव, त्यागी पीपल की छाँव, किवाड़ बंद घरों में अब बसता है आदमी।
वाणी से विषधर बन, उठा के जहरीला फ़न, आदमी को आदमी संग डँसता है आदमी।
घूमे पगलाया सा, बौराया मारा - मारा फिरे, लाशों के अम्बार पर हँसता है आदमी।
जाग रे मनुज जाग, फिर से जगेंगे भाग, रख अपने आस - पास प्रकृति को संवार कर।
करता है जितना तू निज संतति से नेह, पेड़ - पौंधों से भी प्यारे उतना ही प्यार कर।
जितना कमाया यहाँ, उतना चुकाना भी है, लालच में पड़कर न साँसों का व्यापार कर।
अब भी समय है, तू चाहे तो संभल जा, या चुपचाप अपनी बारी का इंतजार कर। ~ प्रवेश ~
Wednesday, August 26, 2020
ऐ माटी मेरे गाँव की
तू मुझे बुला ले पास तेरे
करूँ कैसे बयां कि हैं कैसे जुड़े
तेरे संग अहसास मेरे।
मेरी उँगली पकड़ मुझे लेकर चल
मेरे खेतों में खलिहानों में
जहाँ ठण्डी पवन सौंधी खुशबू
भर दे मेरी इन साँसों में।
तूने पाला मुझे तूने प्यार दिया
इन हाथों को कुछ काम भी दे
तेरे पास ही रोजी चलती रहे तो
तेरा बेटा शहर का नाम न ले।
मुझे तेरी कसम मेरा प्यार है तू
ये शहर मुझे नहीं भाता है
मैं रहना चाहूँ पास तेरे
यहाँ दम सा घुटा मेरा जाता है।
मैं करूँ दुआ वापस लौटूं
मेरे गॉंव की ओर कदम निकले
जब तक मैं जियूँ तेरे पास जियूं
तेरी गोद में मेरा दम निकले। ~ प्रवेश ~
Thursday, June 4, 2020
एडमिन
ए डी एम आई आदमी एन न
अर्थात
आदमी नहीं है एडमिन
अपितु आदमी से अलग
साधारण मनुष्य से
कहीं ऊपर उठ चुका
एक देवांश है एडमिन |
एडमिन एक शक्ति पुंज है
जिसमें निहित हैं
समूह की सभी शक्तियां
समूह के विस्तार की शक्तियां
समूह के संचालन की शक्तियां
शक्तियां समूह को मर्यादित रखने की
और समूह के विघटन की शक्तियां |
सोशल मीडिया ग्रुप रूपी बारात में
दूल्हे का पिता है एडमिन
जिसको सबकी सुननी है
सबकी माननी है
जिसको मनाना है रूठे फूफे को
हर एक को खुश रखना है |
एडमिन चाहे कुछ भी हो
मगर मेंबर्स से बड़ा नहीं है एडमिन
मेंबर्स से ही बना है एडमिन
यदि मेंबर्स नहीं तो क्या है एडमिन !! ~ प्रवेश ~
Saturday, April 25, 2020
घर के बाहर मौत खड़ी है
Tuesday, April 14, 2020
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है
Monday, April 13, 2020
जो डर गया - समझो बच गया
इस तूफ़ान के गुजर जाने के बाद
इसके किस्से सुनाएंगे
अपनी आने वाली नस्लों को
कि कैसे मिट गए
किसी की ना सुनने वाले
किसी की ना मानने वाले
कैसे टूट गए वो दरख़्त
जो तने रहे अपनी अकड़ में
और तेज़ हवा से जमींदोज हो गए
उनसे पूछेंगे बच्चे
दादा तुम कैसे बचे
तो उनके पास मौका होगा
खुद की तारीफ़ करने का
खुद के गाल बजाने का
जबकि उन्होंने कुछ किया ही नहीं
सिर्फ घर में रहे
डरकर रहे - डटकर रहे
और झूठी साबित कर दी
गब्बर सिंह की बात
अब नया किस्सा होगा
जो डर गया - समझो बच गया | ~ प्रवेश ~
Tuesday, March 31, 2020
मत छोड़ो घर-द्वार
उनको लग नहीं पायेगा, कोरोना का रोग ||
सजग रहें सब जन यहाँ, जतन करै सरकार |
जन जमाव न हो सके, मत छोड़ो घर-द्वार ||
हाथ मिला या ना मिला, साबुन से धो हाथ |
एक मीटर तू दूर रह, दे अपनों का साथ ||
रब हो खुदा या यीशु हों, या हों भोलेनाथ |
यह संकट टल जाने दो, दरस करेंगे साथ || ~प्रवेश~
Tuesday, March 17, 2020
मजदूर मिस्त्री
एक ठेकेदार ने गारा बनाते हुए
और मजदूर समझ बैठा |
ठेकेदार मुग्ध हुआ
उसकी क़ाबिलियत पर
जिस तरह उसने फावड़ा चलाया
और मिस्त्री ने उसकी तारीफ़ की |
ठेकेदार ने उसे ऑफर दिया
कुछ रुपये बढ़ा के मजदूरी देने का
और वो मान भी गया
इस तरह एक मिस्त्री मजदूर बना
और मजदूर ही रह गया | ~ प्रवेश ~