हालात आजकल
वर्तमान परिस्थितियों से सम्बंधित रचनाएँ
Wednesday, June 14, 2017
पुतला और सिर
एक पुतला है
एक सिर है
पुतले में जान नहीं है
अकड़ है
सिर में दिमाग है
किन्तु लचक भी है । ~ प्रवेश ~
Monday, June 12, 2017
बिजली - पानी - सड़क नहीं है
बिजली - पानी - सड़क नहीं है
नेताजी को फरक नहीं है |
इनका घर है स्वर्ग से सुन्दर
गाँव सा कोई नरक नहीं है | *
तब बोतल - नोटों में बिक गयी
जनता अब क्यों भड़क रही है |
खून नसों में पानी हो गया
छाती फिर भी धड़क रही है |
धूल झोंकने फिर आयेंगे
बायीं वाली फड़क रही है |
इनसे करे सवाल जो कोई
बन्दा ऐसा कड़क नहीं है | ~ प्रवेश ~
*गाँव सा कोई नरक नहीं है = दूरस्थ गाँव जो
आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं |
Thursday, June 1, 2017
बात जरा सी है
मान भी जा नादाँ, बात जरा सी है।
तू भी जानता है तेरी औकात जरा सी है।।
अरसा हुआ, जमीं में दरारें पड़ गयीं।
प्यास बड़ी है, ये बरसात जरा सी है।।
कभी हाथ बढ़ा, कभी हाथ मिला।
न सोच कि ये दोस्ती की सौगात जरा सी है।।
अमन, चैन, खुशियों भरी भोर आयेगी।
सो न जाना गहरे, अब रात जरा सी है।। ~ प्रवेश ~
माँ छबछे प्याली है
गोली है या काली है।
माँ छबछे प्याली है।।
वो ही लाद कलती है
वो ही दाँत लगाने वाली है।
माँ छबछे प्याली है।।
गुच्छा भी कलती है
फिल भी भोली-भाली है ।
माँ छबछे प्याली है।।
मैं उछकी बगिया का पौंधा
वो मेली माली है।
माँ छबछे प्याली है।।
उछने काले तीके छे
मेली नजल उताली है।
माँ छबछे प्याली है।।
माँ तेले बिन मेला जीवन
खाली - खाली है।
माँ छबछे प्याली है।। ~ प्रवेश ~
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