Wednesday, August 26, 2020

ऐ माटी मेरे गाँव की

ऐ माटी मेरे गाँव की 
तू मुझे बुला ले पास तेरे 
करूँ कैसे बयां कि हैं कैसे जुड़े 
तेरे संग अहसास मेरे।  

मेरी उँगली पकड़ मुझे लेकर चल 
मेरे खेतों में खलिहानों में 
जहाँ ठण्डी पवन सौंधी खुशबू 
भर दे मेरी इन साँसों में। 

तूने पाला मुझे तूने प्यार दिया 
इन हाथों को कुछ काम भी दे 
तेरे पास ही रोजी चलती रहे तो 
तेरा बेटा शहर का नाम न ले। 

मुझे तेरी कसम  मेरा प्यार है तू 
ये शहर मुझे नहीं भाता है 
 मैं रहना चाहूँ पास तेरे 
यहाँ दम सा घुटा मेरा जाता है। 

मैं करूँ दुआ वापस लौटूं 
मेरे गॉंव की ओर कदम निकले
जब तक मैं जियूँ तेरे पास जियूं 
तेरी गोद में मेरा दम निकले। ~ प्रवेश ~ 




Thursday, June 4, 2020

एडमिन

आदमी न 

ए डी एम आई आदमी एन न 
अर्थात
आदमी नहीं है एडमिन
अपितु आदमी से अलग
साधारण मनुष्य से
कहीं ऊपर उठ चुका
एक देवांश है एडमिन |
एडमिन एक शक्ति पुंज है
जिसमें निहित हैं
समूह की सभी शक्तियां
समूह के विस्तार की शक्तियां
समूह के संचालन की शक्तियां
शक्तियां समूह को मर्यादित रखने की
और समूह के विघटन की शक्तियां |
सोशल मीडिया ग्रुप रूपी बारात में
दूल्हे का पिता है एडमिन
जिसको सबकी सुननी है
सबकी माननी है
जिसको मनाना है रूठे फूफे को
हर एक को खुश रखना है |
एडमिन चाहे कुछ भी हो
मगर मेंबर्स से बड़ा नहीं है एडमिन
मेंबर्स से ही बना है एडमिन
यदि मेंबर्स नहीं तो क्या है एडमिन !! ~ प्रवेश ~





Saturday, April 25, 2020

घर के बाहर मौत खड़ी है

घर के बाहर मौत खड़ी है
कठिन परीक्षा की ये घड़ी है ।।

पैरों में जो पड़ी है बेड़ी 
हीरे - मोतियों से जड़ी है।।

पेट कहे ये दौर है मुश्किल
सिर को बस नाम की पड़ी है।।

होने को उम्मीद बहुत है
मगर भूख से कहाँ बड़ी है।।

आने वाला घर लौटेगा 
पटरी अभी नहीं उखड़ी है।।

मुझको उस पर ऐतबार है
उसने मुश्किल जंग लड़ी है।। ~प्रवेश~

Tuesday, April 14, 2020

हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है


हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है
जब रुक गया संसार में मानव का मानव से मिलन
तब कर रहे तुम अनवरत निज कर्तव्य का निर्वहन
जब स्वयं के तन को छूने पर भी लग गया हो बंधन
तब कर रहे तुम रुग्ण जन का मुक्त हृदय से आलिंगन
तुम्हारा सेवा भाव निःस्वार्थ है निष्काम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है |

अज्ञात है जब शत्रु तब भी मोह निज का त्यागकर
तुम लड़ रहे मैदान में बिन थके निरन्तर जागकर
साधारण मनुज होता तो कब का चला जाता भागकर
करके कोई झूठा बहाना लम्बी छुट्टी मांगकर
तुम्हें तो कर्तव्य पथ पर बढ़ते जाना अविराम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है |

हम हृदय से ऋणी हैं, हम आप के कृतज्ञ हैं
ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें, जो आपसे अनभिज्ञ हैं
हे देवों के अंश आप स्वयं ही मर्मज्ञ हैं
कोई माने या न माने राम तो सर्वज्ञ हैं
जगत का कल्याण करने आप सब में राम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है | ~ प्रवेश ~

Monday, April 13, 2020

जो डर गया - समझो बच गया

वो जो बच जाएंगे
इस तूफ़ान के गुजर जाने के बाद
इसके किस्से सुनाएंगे
अपनी आने वाली नस्लों को
कि कैसे मिट गए
किसी की ना सुनने वाले
किसी की ना मानने वाले
कैसे टूट गए वो दरख़्त
जो तने रहे अपनी अकड़ में
और तेज़ हवा से जमींदोज हो गए
उनसे पूछेंगे बच्चे
दादा तुम कैसे बचे
तो उनके पास मौका होगा
खुद की तारीफ़ करने का
खुद के गाल बजाने का
जबकि उन्होंने कुछ किया ही नहीं
सिर्फ घर में रहे
डरकर रहे - डटकर रहे
और झूठी साबित कर दी
गब्बर सिंह की बात
अब नया किस्सा होगा
जो डर गया - समझो बच गया | ~ प्रवेश ~

Tuesday, March 31, 2020

मत छोड़ो घर-द्वार

अपने घर में रह रहे, संयम से जो लोग |
उनको लग नहीं पायेगा, कोरोना का रोग ||

सजग रहें सब जन यहाँ, जतन करै सरकार |
जन जमाव न हो सके, मत छोड़ो घर-द्वार ||

हाथ मिला या ना मिला, साबुन से धो हाथ |
एक मीटर तू दूर रह, दे अपनों का साथ ||

रब हो खुदा या यीशु हों, या हों भोलेनाथ |
यह संकट टल जाने दो, दरस करेंगे साथ || ~प्रवेश~

Tuesday, March 17, 2020

मजदूर मिस्त्री

एक दिन देख लिया उसे
एक ठेकेदार ने गारा बनाते हुए
और मजदूर समझ बैठा |
ठेकेदार मुग्ध हुआ
उसकी क़ाबिलियत पर
जिस तरह उसने फावड़ा चलाया
और मिस्त्री ने उसकी तारीफ़ की |
ठेकेदार ने उसे ऑफर दिया
कुछ रुपये बढ़ा के मजदूरी देने का
और वो मान भी गया
इस तरह एक मिस्त्री मजदूर बना
और मजदूर ही रह गया | ~ प्रवेश ~


Monday, January 6, 2020

जनता कभी नहीं देखेगी
उन्हें इज्जत भरी निगाह से

जो पत्थर मारें रखवालों को
देश को गाली देते हैं
जो जनता को पिटवाते हैं
जो दंगों को भड़काते हैं
जो देश में आग लगाते हैं
जो इस घर का तो खाते हैं
मगर गुण पड़ोसी के गाते हैं
भारत माता की जय कहने में
बेशर्मी से शरमाते हैं

उनको भी जो बाँट रहे हैं
इंसानों को जात में ,
बंदूकें जो बाँट रहे हैं
बच्चों को सौगात में ,
मूसलचंद बने फिरें
जो दाल में और भात में ,
माइक - कैमरा देखकर जो
नहीं रहें औकात में |

रोड़े जो अटकाते हैं
राष्ट्रोन्नति की राह में
राष्ट्र प्रथम जो नहीं मानते
पद प्रतिष्ठा की चाह में
आज ही उनको कर देना
चाहूंगा आगाह मैं
कभी नहीं  उठ पाएंगे वो
जनता की निगाह में | ~ प्रवेश ~