Saturday, April 25, 2020

घर के बाहर मौत खड़ी है

घर के बाहर मौत खड़ी है
कठिन परीक्षा की ये घड़ी है ।।

पैरों में जो पड़ी है बेड़ी 
हीरे - मोतियों से जड़ी है।।

पेट कहे ये दौर है मुश्किल
सिर को बस नाम की पड़ी है।।

होने को उम्मीद बहुत है
मगर भूख से कहाँ बड़ी है।।

आने वाला घर लौटेगा 
पटरी अभी नहीं उखड़ी है।।

मुझको उस पर ऐतबार है
उसने मुश्किल जंग लड़ी है।। ~प्रवेश~

Tuesday, April 14, 2020

हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है


हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है
जब रुक गया संसार में मानव का मानव से मिलन
तब कर रहे तुम अनवरत निज कर्तव्य का निर्वहन
जब स्वयं के तन को छूने पर भी लग गया हो बंधन
तब कर रहे तुम रुग्ण जन का मुक्त हृदय से आलिंगन
तुम्हारा सेवा भाव निःस्वार्थ है निष्काम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है |

अज्ञात है जब शत्रु तब भी मोह निज का त्यागकर
तुम लड़ रहे मैदान में बिन थके निरन्तर जागकर
साधारण मनुज होता तो कब का चला जाता भागकर
करके कोई झूठा बहाना लम्बी छुट्टी मांगकर
तुम्हें तो कर्तव्य पथ पर बढ़ते जाना अविराम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है |

हम हृदय से ऋणी हैं, हम आप के कृतज्ञ हैं
ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें, जो आपसे अनभिज्ञ हैं
हे देवों के अंश आप स्वयं ही मर्मज्ञ हैं
कोई माने या न माने राम तो सर्वज्ञ हैं
जगत का कल्याण करने आप सब में राम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है | ~ प्रवेश ~

Monday, April 13, 2020

जो डर गया - समझो बच गया

वो जो बच जाएंगे
इस तूफ़ान के गुजर जाने के बाद
इसके किस्से सुनाएंगे
अपनी आने वाली नस्लों को
कि कैसे मिट गए
किसी की ना सुनने वाले
किसी की ना मानने वाले
कैसे टूट गए वो दरख़्त
जो तने रहे अपनी अकड़ में
और तेज़ हवा से जमींदोज हो गए
उनसे पूछेंगे बच्चे
दादा तुम कैसे बचे
तो उनके पास मौका होगा
खुद की तारीफ़ करने का
खुद के गाल बजाने का
जबकि उन्होंने कुछ किया ही नहीं
सिर्फ घर में रहे
डरकर रहे - डटकर रहे
और झूठी साबित कर दी
गब्बर सिंह की बात
अब नया किस्सा होगा
जो डर गया - समझो बच गया | ~ प्रवेश ~