हे अघोषित युद्ध
के वीरो तुम्हें प्रणाम है
जब रुक गया
संसार में मानव का मानव से मिलन
तब कर रहे तुम
अनवरत निज कर्तव्य का निर्वहन
जब स्वयं के
तन को छूने पर भी लग गया हो बंधन
तब कर रहे तुम
रुग्ण जन का मुक्त हृदय से आलिंगन
तुम्हारा सेवा
भाव निःस्वार्थ है निष्काम है
हे अघोषित युद्ध
के वीरो तुम्हें प्रणाम है |
अज्ञात है जब
शत्रु तब भी मोह निज का त्यागकर
तुम लड़ रहे
मैदान में बिन थके निरन्तर जागकर
साधारण मनुज
होता तो कब का चला जाता भागकर
करके कोई झूठा
बहाना लम्बी छुट्टी मांगकर
तुम्हें तो
कर्तव्य पथ पर बढ़ते जाना अविराम है
हे अघोषित युद्ध
के वीरो तुम्हें प्रणाम है |
हम हृदय से
ऋणी हैं, हम आप के कृतज्ञ हैं
ईश्वर उन्हें
सद्बुद्धि दें, जो आपसे अनभिज्ञ हैं
हे देवों के
अंश आप स्वयं ही मर्मज्ञ हैं
कोई माने या
न माने राम तो सर्वज्ञ हैं
जगत का कल्याण
करने आप सब में राम है
हे अघोषित युद्ध
के वीरो तुम्हें प्रणाम है | ~ प्रवेश ~