Tuesday, September 28, 2021

सूर्यदेव का दोष


सड़क जो बनी बरसात के बाद
रही साल भर चकाचक
खूब बटोरी वाहवाही
अगली बारिश आने तक।

अब फिर से बारिश आयी है
अपने संग जाने क्या लायी है
तारकोल से कंकड़ बिछड़ गए
कंकड़ -कंकड़ छितरायी है।

जो सड़क धूप में सही रही
बारिश आने पर टूटी है
ऐसा प्रकृति ने कोप किया
जनता की किस्मत फूटी है।

ठेकेदार - नेता के ऊपर
जनता का अकारण रोष है
सड़क टूटने में सारा
सूर्यदेव का दोष है।

न तपता सूरज तेजी से
न भाप समंदर से उठती
न बादल बनते- वर्षा होती
न बारिश में सड़क लुटती। ~प्रवेश~

Thursday, July 15, 2021

जैसा हूँ वैसा रहने दो

जैसा हूँ वैसा रहने दो।
मुझको मुझ जैसा रहने दो।।  

तुम सा तो मैं हो न सकूंगा।
अपना मशविरा रहने दो।। 

दर्द का सबब भूल न जाऊँ। 
घाव अभी हरा रहने दो।।

असल चेहरे दिख जायेंगे। 
अँधेरा कमरा रहने दो।।

जागेगा तो चीख़ उठेगा। 
सोया है सोया रहने दो।।

खुशियों से हम मर जायेंगे। 
थोड़ा और ज़िन्दा रहने दो।।~ प्रवेश ~ 

Thursday, May 13, 2021

धर यमराज भेष, फैली है देस - बिदेस, कोरोना के रूप में मुसीबत बड़ी आयी है। 

विषम समय - काल, थमी है जीवन की चाल, आज मानवता की परीक्षा की  घड़ी आयी है। 

आत्मनियंत्रण - संयम - सावधानी को परखने मनुज पे दुःखों की झड़ी आयी है। 

जैसे बीता अच्छा कल, बीत जायेगा ये पल, मानव जाति कई विपदाओं से लड़ी आयी है। 


जंगलों को काट के शहर बसाने के बाद, प्राणवायु के लिए तरसता है आदमी। 

त्याग दिये गाँव, त्यागी पीपल की छाँव, किवाड़ बंद घरों में अब बसता है आदमी। 

वाणी से विषधर बन, उठा के जहरीला फ़न, आदमी को आदमी संग डँसता है आदमी। 

घूमे पगलाया सा, बौराया मारा - मारा फिरे, लाशों के अम्बार पर हँसता है आदमी। 


जाग रे मनुज जाग, फिर से जगेंगे भाग, रख अपने आस - पास प्रकृति को संवार कर। 

करता है जितना तू निज संतति से नेह, पेड़ - पौंधों से भी प्यारे उतना ही प्यार कर। 

जितना कमाया यहाँ, उतना चुकाना भी है, लालच में पड़कर न साँसों का व्यापार कर। 

अब भी समय है, तू चाहे तो संभल जा, या चुपचाप अपनी बारी का इंतजार कर।  ~ प्रवेश ~