Saturday, March 26, 2011

प्रेम अम्बर का धरा से

प्रेम अम्बर का धरा से

प्रेम अम्बर का धरा से 
ताकना दिन- रात ऐसे,
मूक संकेतों से करते 
हैं परस्पर बात जैसे |

रात में रोता गगन है ,
दिवस में तपती धरा है ,
मिलन हो सकता है नहीं ,
कैसी प्रेम की परंपरा है !

धीर- धारिणी पवन मार्फ़त 
भेजती सन्देश नभ को ,
गरजकर व्याकुल गगन,
कर देता है खबर सबको |

देखना बस दूर से 
पर मिल नहीं पाना परस्पर ,
सोचिये , कैसी विकट स्थिति 
झेलते हैं दोनों अक्सर |

है कोई उदहारण 
धरती - गगन के प्रेम जैसा ?
कई प्रेम - प्रसंग देखे ,
देखा कभी न प्रेम ऐसा |

                                      " प्रवेश" 

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