बछिया की फ़िक्र
नयी ख़ुशी घर आने को थी ,
गाय दोबारा ब्याने को थी ,
सबने बछड़े की आस लगाई ,
इस बार भी बछिया ही आई |
सबको ही बछिया की फ़िक्र ,
कैसे निजात मिले ये जिक्र ,
इसकी कीमत कौन लगायेगा ,
कोई मुफ्त भी न ले जायेगा |
जब बछिया बड़ी हो जायेगी ,
और घर से बाहर जायेगी ,
छूटे सांड गली में फिरते ,
कैसे लाज बचायेगी |
अगर मिल गयी आँख किसी से ,
और जुड़ गयी काँख किसी से ,
खुद तो ये बदनाम होगी ,
घर की इज्जत नीलाम होगी |
घर वालों को कौन बताये ,
कैसे कोई उन्हें समझाये,
गायें ही बछड़े जनती हैं ,
बछिया ही गायें बनती हैं |
"प्रवेश"
No comments:
Post a Comment