Friday, March 4, 2011

मार्च पाँच


  • मार्च पाँच 

    कितने  ग्रीष्म 
    कितने  शिशिर,
    देख चूका हूँ 
    मैं अब  तक !

    कितने हेमंत ,
    कितने शरद 
    झेल चूका हूँ
     मैं अब तक!

    कभी - कभी
    लगता है
    आये सौ बसंत
    हैं एक साथ |

    कभी टूट पड़े
    पतझड़ सहस्त्र 
    देने मेरी
    हिम्मत को मात |

    कभी सूखा
    कभी सावन
    करते मेरे
    धैर्य की जाँच |

    उम्र बढाता
    आयु घटाता
    हर वर्ष आता
    मार्च पाँच |
                                  "प्रवेश "

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