- मार्च पाँच
कितने ग्रीष्मकितने शिशिर,देख चूका हूँमैं अब तक !
कितने हेमंत ,कितने शरदझेल चूका हूँमैं अब तक!
कभी - कभीलगता हैआये सौ बसंतहैं एक साथ |
कभी टूट पड़ेपतझड़ सहस्त्रदेने मेरीहिम्मत को मात |
कभी सूखाकभी सावनकरते मेरेधैर्य की जाँच |
उम्र बढाताआयु घटाताहर वर्ष आतामार्च पाँच |"प्रवेश "
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