रेत का टीला
बेचारा
रेत का टीला
तरसता
अपने अस्तित्व को,
अपने ही जहाँन में
निरे रेगिस्तान में |
हवा की मनमानी ,
बेबस
रेत का टीला
थोड़ी जिद करे
जब हो गीला ,
मगर कब तक !!
चुपचाप
चल देता है
जहाँ भी ले जाना चाहे
हवा की एक डाँट
फिर बन्दर बाँट
कुछ इधर छितरी
कुछ उधर
और रेत का टीला
रेत में गुम |
फिर चारों ओर
रेत ही रेत
मगर टीला कहाँ
सिर्फ रेतीला खेत |
प्रवेश
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