कहाँ मिलेंगी किताबें ?
जो भी लिखा है
उससे संतुष्ट नहीं हूँ मैं
उत्कृष्ट कृति का आना
बाकी है अभी ।
मगर एक विचार आया
जितना लिखा है
एक किताब छपवा दूँ
अपने नाम के साथ ।
जोड़ -तोड़ कर
इंतजाम किया
धनराशि और प्रकाशक का
किताब के लिये ।
एक बिजली सी कौंधी
मस्तिष्क में
एक प्रश्न आया
तकनीक के इस युग में
जब कंप्यूटर और अंतर्जाल
फ़ैल रहा है
अमरबेल की तरह ,
लैपटॉप पहुँच चुका है
हमारी रजाई में ,
यहाँ तक कि
पाखाने में भी ,
तो आने वाले समय में
कहाँ मिलेंगी किताबें ?
बच्चों की पढाई के कमरे में
किसी मेज पर या कुर्सी पर ,
किसी अलमारी की दराज में ,
या बैठक कमरे में सोफे पर ,
घर के सामने
बगीचे में रखी बेंच पर
या हरी - हरी घास पर !
शायद इनमे से कहीं नहीं !
तो फिर कहाँ मिलेंगी ?
एक जगह जहन में आयी है
निचली मंजिल में अंतिम छोर पर
वो छोटी सी कोठरी ,
जहाँ दादी की खाट लगी है
और एक लाल बल्ब जलता है
अँधेरा चीरने को ।
वहीँ कहीं दाल के पीपे के ऊपर
पड़ी मिलेंगी कुछ
और कुछ कोने में खड़े
बोरे में बंद ,
कुछ पसरी होंगी
दादी की खाट के नीचे ।
भला और कहाँ मिलेंगी किताबें ?
प्रवेश
Bahut Sunder kd aanewale samey ka ek kadwa sach
ReplyDeleteये सच है , पर अभी भी कद्रदान बचे हैं ... अच्छी रचना
ReplyDeleteप्रवेश जी ! आपकी चिंता जायज है,लेकिन हमें यह नहीं भुला चाहिए की इलेक्ट्रानिक मेटीरियल कभी भी फेल हो सकता है तब के लिए प्रिंड मेटीरियल को सहेजकर रखे जाने की आवश्यकता है......
ReplyDeleteउपरोक्त सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार एवं स:परिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ................प्रवेश जी ! आपकी चिंता जायज है,लेकिन हमें यह नहीं भुला चाहिए की इलेक्ट्रानिक मेटीरियल कभी भी फेल हो सकता है तब के लिए प्रिंड मेटीरियल को सहेजकर रखे जाने की आवश्यकता है......
उपरोक्त सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार एवं स:परिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ................
वर्ड वेरिफिकेशन ..................?