थोड़ी कड़वाहट
स्वर्ण रजत हीरे जड़ित, मखमल सेज सहेजि।
चिरनिद्रा के वास्ते वही काठ की सेजि ।। १
नाना प्रसाधन भये , जे रखि रूप निखारि ।
ऐसे ना साधन भये , जे चित्त देइ सुधारि ।। २
प्रवेश दुनिया बावली , छूकर मृत नहात ।
अरु जीवित को करि मृत , बड़े चाव से खात ।। ३
सम्बन्ध सकल सवारथी, तकैं काल की राह ।
निकरि आवै शुभ काज तो , करैं टाल की चाह ।। ४
मन पावन नाही किया , वस्त्र गेंहुएं ओढ़ ।
कृत्रिम खाल चढ़ाय ली , असल खाल में कोढ़ ।। ५
सम्बन्ध सकल सवारथी, तकैं काल की राह ।
निकरि आवै शुभ काज तो , करैं टाल की चाह ।। ४
मन पावन नाही किया , वस्त्र गेंहुएं ओढ़ ।
कृत्रिम खाल चढ़ाय ली , असल खाल में कोढ़ ।। ५
प्रजा बात करे हक़ की, याद दिलाते लीक ।
राजा चाहे जो करे , सब कानूनन ठीक ।। ६
मात - पिता का मशवरा , समझ न लीजै डाँट ।
ज्यों सुन्दर उद्यान में , बहुत जरूरी छाँट ।। ७
पौंध लगाईं एक ना, जीवनपुर के गाँव ।
आयि दुपहरी जेठ की, कह कित पावै छाँव ? ८
फँसती जाती पंक में , सुरनद करे विलाप ।
नर - नर की खातिर खाई , खोदै अपने आप ।। ९
जलत-जलत वन जल बिना, शाख -पात जल जात ।
भूमि तले जड़ ना जलै, जल मिलि पुनि नव पात ।। १०
तू - तू करता जो चला, पहुँचा तेरे पास ।
जो मैं - मैं करता चला, खायी गल की फाँस ।। ११
अर्थ - अर्थ का फेर है , अर्थ सगे सब खैर ।
अर्थ सगे आनन्द है , अर्थ सगे ही बैर ।। १२
संगत बड़ी कमाल की , असर न खाली देत ।
एक तोता भजे राम को , दूजा गाली देत ।। १३
कल - कल में कल गया , कल - कल में आज ।
कल में ही कल जायेगा , कल में तख़्त -ओ- ताज ।। १४
जो जी ना हारे कभी, जीना हार पहिराय ।
जीना ऊपर ले चले , जीना नीचे लाय ।। १५
टुकड़े - टुकड़े करि कथा , कविता लई बनाय |
देखि आप की दुर्दशा , कविता नीर बहाय || 16
हिन्दी - हिन्दी सब कहें , इक पखवाड़े धूम |
शेष साल हिन्दी रहे , अपनों से महरूम || 17
दे हरि दे हरि जग कहे , हरि की चौखट छाड़ि |
हरि देहरि जो जात है , हरि दे छप्पर फाड़ि || 18
शुद्ध लिखी जो वर्तनी , उच्चारण में जान |
भाव मिले जो चाहिये , रचना को सम्मान || 19
चला नाक के सीध में, पहुँचा हरि के द्वार ।
असी बरस की जिंदगी , एक ही पल की मौत ।
दोनों का रिश्ता अहो , ज्यों घरवाली - सौत ।। 21
दीमक बरगद खा गयी , लौह खा गयी जंग ।
ईर्ष्या मन को खा गयी , चिन्ता नयी उमंग ।। 22
नहीं समझ तो ना चले , उपदेशों से काम ।
ज्यों गंजों की दौड़ में , कंघी मिले इनाम ।। 23
राह भले ही हो कठिन , चले चलो चुपचाप ।
मंजिल चूमेगी कदम , शिखर छुओगे आप ।। 24
लक्ष्य रहे निगाह में , मन में हो उल्लास ।
जो चले वो पहुँच गये , ठहरे हुये निराश ।। 25
हरी - हरी दो दिन मिले , नयी गाय को घास ।
तीजे दिन डंडा मिले , चौथे दिन उपवास ।। 26
उमर गयी करते हुये , जमा खर्च की बात ।
जमा किया जिनके लिये , वही मारते लात ।। 27
जैसे आंधी में हवा , लहरों में तूफ़ान ।
जैसे सूरज में चमक , वैसे तन में प्रान ।। 28
मन मलिन मुख चन्द्र सम , अति कुटिल व्यवहार ।
ते ही सुन्दर जगत में , जे मन बसि सुविचार ।। 29
रूप ना देखो मीत का , देखि लियो किरदार ।
बुरी नजर जब भी लगे , काजल देय उतार ।। 30
मैं - मैं करि बकरी मरी , उल्टी छुरी हलाल ।
मैं से ही हो जायगा , बकरी जैसा हाल ।। 31
राजनीति ना है बुरी , बुरे आ पड़े लोग ।
परमारथ को त्यागकर , लक्ष्य हो गया भोग ।। 32
जड़ना हो आरोप तो , हिंदी से शुरुआत ।
और सफाई के बखत , अंग्रेजी में बात ।। 33
दाँत गड़े खट्टा लगे , खाकर आये स्वाद ।
आँवल के लक्षण जैसी , दादी जी की बात ।। 34
सभी फूल ना फल बनें , सब फल ना आहार ।
सभी बीज ना तरु बनें , सब तरु ना फलदार ।। 35
लिखते - लिखते लिख दिया , नश्वर यह संसार |
प्रेम अमर है सर्वदा , जीवन का यह सार || 36
पानी तू ही प्रेमिका, पानी तू ही सौत |
पानी से ही जिंदगी, पानी से ही मौत || 37
वक्ता ऐसा चाहिए, खींचे सबका ध्यान |
बड़बोलापन ना रहे, बातों में हो ग्यान || 38
खोलन चाहूं दर्द हो, बंद करूँ तो चैन |
कंप्यूटर के सामने , ज्यादा दुखते नैन || 39
चुप रह जाना है कला, चुप रहना इक रोग |
चुप रह जाने के लिये, करें साधना लोग || 40
सही समय पर नींद ले, सही समय पर जाग |
असमय करते काज जो, रहती भागमभाग || 41
अच्छा लगने के लिये, अच्छा कीजे काम |
अच्छा - अच्छा बोलिये, जग में होगा नाम || 42
महँगा जूता पहनकर, ठक- ठक- ठक- ठक जाहि |
नजर धरा पर ना रही, मुँह की ठोकर खाहि || 43
ठण्डी - ठण्डी है हवा, ठण्डा - ठण्डा घाम |
सोते रहते भास्कर, करते अति विश्राम || 44
सुखदायी रजाई है, पीड़ा देत समीर |
पंछी भी नहीं चाहते, सुबह त्यागना नीड़ || 45
प्रवेश
प्रवेश दुनिया बावली , छूकर मृत नहात ।
ReplyDeleteअरु जीवित को करि मृत , बड़े चाव से खात ।।........कितना सही कहा आपने
Kadwa Sach,.....Pravesh ji
ReplyDeleteKaafi Kadve hai yeh Kaante... Kuchh chubhe to hosh aa gaya... Bohot hi umdaa bayaan hai Mahashay !
ReplyDeletebilkul katu saty pravesh ji ....badhhai ho ..!
ReplyDelete:तेंतालीस कहे .......अर्ध-शतक तो पूरा कर ही देते प्रवेश .......बढ़िया :)
ReplyDeletedaddu... 23 feb, 2012 se ab tak 43 hain.. ardh shatak bhi ho hi jayega.
Delete