आज भी हमेशा की तरह
मैं फिर से जल्दी जाग गया ।
सूरज के उगने से पहले
एक मील तक भाग गया ।
घर पहुँचा तो रोज की तरह
श्रीमती जी को झकझोरा ।
फिर मैं प्राणायाम के लिये
बैठ गया बिछाकर बोरा ।
श्रीमती ने स्लोली - स्लोली
टेस्टी ब्रेकफास्ट बनाया ।
फिर वही सब हुआ
जो अब तक होता आया ।
फिर मैं अपने दाँत पहनकर
नाश्ता करने बैठ गया ।
एक पराँठे का टुकड़ा
दाँतों के बीच में ऐंठ गया ।
उसके बाद मैं बन ठन कर
साईकिल पर सवार हो गया ।
श्रीमती को टा - टा कहकर
दफ्तर को फरार हो गया ।
गेट पर पहुँचा तो मुझको
चौकीदार ने रोका ना ।
और पहले की तरह मुझे
उसने सलाम भी ठोका ना ।
दफ्तर में पहुँचा तो
सबसे दुआ - सलाम हुई ।
किसी से नमस्कार तो
किसी से राम - राम हुई ।
मेरे नाम की तख्ती गायब
मेरा न कोई ठौर था ।
दफ्तर में मेरी कुर्सी पर
आज कोई और था ।
उसके बाद दस्तखत करने
जब रजिस्टर खोला ।
सुबह से अब तक सब चुप थे
बस रजिस्टर ही बोला ।
देखो कविता के अंत में
कैसा सैटायर हो गया ।
रजिस्टर मुझसे बोला
मैं तो कल रिटायर हो गया ।
" प्रवेश "
दफ्तर में पहुँचा तो
सबसे दुआ - सलाम हुई ।
किसी से नमस्कार तो
किसी से राम - राम हुई ।
मेरे नाम की तख्ती गायब
मेरा न कोई ठौर था ।
दफ्तर में मेरी कुर्सी पर
आज कोई और था ।
उसके बाद दस्तखत करने
जब रजिस्टर खोला ।
सुबह से अब तक सब चुप थे
बस रजिस्टर ही बोला ।
देखो कविता के अंत में
कैसा सैटायर हो गया ।
रजिस्टर मुझसे बोला
मैं तो कल रिटायर हो गया ।
" प्रवेश "
सुन्दर अभिव्यक्ति प्रवेश जी
ReplyDeleteउम्दा पंक्तियां ..............मेरे नाम की तख्ती गायब, मेरा न कोई ठौर था,
दफ्तर में मेरी कुर्सी पर, आज कोई और था
shukriya fariyadi bhai
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