न दिखइये न छापिये
बस खबर ही अख़बार में ।
कबहूँ तो भीतर झाँकिये
ह्रदय के संसार में ।।
झकझोरिये - धिक्कारिये
दुत्कारिये दुष्कर्म को ।
बोइये इंसानियत
बंजर पड़े व्यवहार में ।।
कुंद मन की भावना को
धार लगवा लीजिये ।
या धार लगवा लीजिये
जंग लगी तलवार में ।।
फिर कभी बनने न पाये
कोई बेटी दामिनी ।
भरिये संवेदनाएँ भी
बेटों के संस्कार में ।।
विधि के रोके क्या रुकेंगे
हृदयविदारक हादसे !
मारिये शैतान को
मन के ही कारागार में ।।
" प्रवेश "
बस खबर ही अख़बार में ।
कबहूँ तो भीतर झाँकिये
ह्रदय के संसार में ।।
झकझोरिये - धिक्कारिये
दुत्कारिये दुष्कर्म को ।
बोइये इंसानियत
बंजर पड़े व्यवहार में ।।
कुंद मन की भावना को
धार लगवा लीजिये ।
या धार लगवा लीजिये
जंग लगी तलवार में ।।
फिर कभी बनने न पाये
कोई बेटी दामिनी ।
भरिये संवेदनाएँ भी
बेटों के संस्कार में ।।
विधि के रोके क्या रुकेंगे
हृदयविदारक हादसे !
मारिये शैतान को
मन के ही कारागार में ।।
" प्रवेश "
No comments:
Post a Comment