पहाड़ है गीं खरण पट्ट
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पहाड़ है गीं
खरण पट्ट ,
नौजवान है गीं
अरण पट्ट ।
कोई बार पढि बेर
कोई अनपढ़ हबेर ,
सब भाज मीं शहर होणि
आँख बुजि बेर ।
पहाड़ में कैक मन
लागण नि रौय ,
सबुकैं शहरौक
चाव चढि गोय ।
कोई पलटि बे नि देखुन
पहाडक उजियाणी,
लागि गे सबुकैं
शहरैकि खाणी ।
ठण्डी हवा , ठण्डो पणिक
भुलि गयीं मोल ,
बुलान लै नि छीं अब ऊं
पहाड़ी बोल ।
भौत आस लगे रै
बड़े धीरज धरि रौछ
पहाडुल आज लै
उनौर बाटो तकि रौछ ।
" प्रवेश "
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