दादी सठिया गयी हैं
दादी सठिया गयी हैं ...
कहती हैं कि
प्रवचन का चैनल लगाओ
या श्वेत -श्याम गाने |
नये गाने मत सुनो
मत देखो
किसी भी बहाने |
लगता है
दादी सठिया गयी हैं |
नया फैशन
नया ज़माना
दादी क्या जाने |
मेरे पहनावे पर भी
तंज कसती हैं
देती हैं ताने |
लगता है
दादी सठिया गयी हैं |
टोकती हैं
जब तैंयार होती हूँ
कहीं बाहर जाने |
बात ना करना
किसी से
जो मिले अनजाने |
लगता है
दादी सठिया गयी हैं |
ना मानूं उनकी
बात कोई
लगती हैं खिसियाने |
कहाँ से लाऊँ
कोई गुरु
दादी को समझाने |
लगता है
दादी सठिया गयी हैं |
प्रवेश
दादी पोती की उम्र का अंतर ही ...विचारों की समानता नहीं लाने देता
ReplyDeleteइसी को जेनेरेशन-गेप कहते हैं.हर समय काल,युग मे दादियाँ सथियासी लगती है...........मेरी दादी मेरी आदर्श थी.उनके कहे एक एक शब्द को मैं सिर माथे लेती थी इसीलिए छब्बीस पोतियों मे उनकी सबसे लाडली थी मैं.आज लगता है उनके पास दुनिया का,जिंदगी का अनुभव था. जिसका फायदा लोग नही उठा पाए.समय के साथ समाज मे होने वाले परिवर्तन को दोनों पीढियां स्वीकार नही कर पाती है.उनमे सामंजस्य हो तो 'दादियाँ सठियाई; नही लगेगी.
ReplyDeleteनया सब बुरा नही.पुराना सब सही नही था.अपने बुजुर्गों का दिल दुखाये बिना हम बेस्ट चुने.
आज लगता है..........वे कभी गलत नही थे.जो कहते थे हमारे भले के लिए कहते थे.
दो पीढ़ियों के वैचारिक मतभेदों को उभारती है यह रचना. रुखी है.....मिठास नही है. जिस दिन दोनों पीढ़ियों के संबंधों मे मिठास होगी ........... कविता भी मीठी बन जायेगी उस दिन. है ना?
आजकल दादिया अपना सठियायेपन की धार को कम भी कर रही है इसीलिए हर पोती - पोता अपने इर्द गिर्द अपनी मर्जी का जाल बुन रहा है और दूर हो रहा है अपने मूल संस्कारो से जहा सब एक दूसरे से जुड़े होते है ।
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