क्यों बड़ा हो गया !
कितने अच्छे दिन थे वो
जब सच - झूठ का पता न था |
एहसास ख़ुशी - गम का न था ,
छाँव - धूप का पता न था |
जो भी होता , अच्छा होता ,
कुछ बुरा कभी होता न था |
रूह कभी दुखती न थी ,
मन कभी रोता न था |
रोने की वजह मालूम न थी |
हँसने का कारण पता न था ,
सब अपने थे, न पराया कोई ,
कभी राग - द्वेष में फंसा न था |
क्यों होश संभाला मैंने और
क्यों लगा समझने खुशियाँ - गम |
क्यों घृणा - प्रेम के भाव जगे ,
क्यों समझ आया रहम - ओ- सितम |
क्यों चलने लगा दुनिया के संग ,
क्यों कन्धा मिलाकर खड़ा हो गया !
क्यों बचपन छोड़ गया मुझको ,
जाने क्यों मैं बड़ा हो गया !!
"प्रवेश "
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