Friday, August 19, 2011

कीचड़ के छींटे !

कीचड़ के छींटे !

बरसात का मौसम है ,
बरसाती बात कहता हूँ |
जो आज घटी मेरे संग ,
वो वारदात कहता हूँ |

जलमग्न और अधपकी सड़क पर 
मैं साईकिल पर सवार था |
एक मनचले चौपहिये वाले को 
अय्याशी का बुखार था |

उस जलमग्न खंडित सड़क पर 
उसकी जो रफ़्तार थी |
मेरे संग दुआ थी आपकी ,
रहमत परवरदिगार की |

मगर मेरी पतलून पर 
कीचड़ के छींटे आ गये |
और मेरे मस्तिष्क में 
एक प्रश्न सा जगा गये |

व्यवस्था - विकास - व्यवहार का 
असर चैन - ओ - सुकून पर |
कीचड़ के छींटे कहाँ पड़े ,
इन तीन पर या पतलून पर |


                                            "प्रवेश "

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