कीचड़ के छींटे !
बरसात का मौसम है ,
बरसाती बात कहता हूँ |
जो आज घटी मेरे संग ,
वो वारदात कहता हूँ |
जलमग्न और अधपकी सड़क पर
मैं साईकिल पर सवार था |
एक मनचले चौपहिये वाले को
अय्याशी का बुखार था |
उस जलमग्न खंडित सड़क पर
उसकी जो रफ़्तार थी |
मेरे संग दुआ थी आपकी ,
रहमत परवरदिगार की |
मगर मेरी पतलून पर
कीचड़ के छींटे आ गये |
और मेरे मस्तिष्क में
एक प्रश्न सा जगा गये |
व्यवस्था - विकास - व्यवहार का
असर चैन - ओ - सुकून पर |
कीचड़ के छींटे कहाँ पड़े ,
इन तीन पर या पतलून पर |
"प्रवेश "
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