जिन्दा फ़रिश्ते
हैं जिन्दा फ़रिश्ते अभी घर में मेरे ,
मुझे मंदिर में जाने की जरूरत नहीं |
इनकी खुशामद ही मन से करूँ ,
पत्थरों को रिझाने की जरूरत नहीं |
बुतपरस्ती नहीं है गंवारा मुझे ,
माँ सी ज़माने में मूरत नहीं |
वालिद का साया है सर पे मेरे ,
मुझे आशियाने की जरूरत नहीं |
इनका रहम - ओ - करम है अगर ,
फिर गंगा नहाने की जरूरत नहीं |
खुद को खड़ा कर लूँ इनकी जगह ,
फिर किसी भी बहाने की जरूरत नहीं |
"प्रवेश "
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