नाम - बदनाम
रेत के घर की तरह
अभिमान भी ढह जाना है |
बुरा हो या भला
बस नाम ही रह जाना है |
सौ बरस जी कर भी गर
किसी को ख़ुशी न दे पाइये |
तब बोझ बनकर ही जिये ,
साँस रोकिये , मर जाइये |
दो घडी ही जिंदगी में ,
काम आयें किसी के |
वस्तुतः साकार होंगे ,
मायने जिंदगी के |
भला कर सकते नहीं तो ,
बुरा भी क्यों कीजिये |
सर्वांग होते हुये भी ,
अपंग समझ लीजिये |
नाम हों , गुमनाम हों ,
बदनाम होइये नहीं |
आने वाली पीढ़ी को
गम में डुबोइए नहीं |
धूल - मिट्टी से बना तन ,
धूल में मिल जाना है |
यश और अपयश ही
दुनिया में रह जाना है |
"प्रवेश "
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