छत पर
आज मौसम बड़ा सुहाना है छत पर |
कुछ देर में उन्हें भी आना है छत पर |
भाँप ले कोई गर बेचैनी मन की |
तो समझे कोई दीवाना है छत पर |
यूँ तो आहाते में काफी जगह है |
कपडे सुखाना , बहाना है छत पर |
जूड़ा खुलेगा और झटकेंगी जुल्फें |
काली घटा को भी छाना है छत पर |
पलक न झपकने की प्रतियोगिता है |
निगाहों में सारा ज़माना है छत पर |
सरगम सी घुल रही है हवा में |
आती - जाती साँसों का तराना है छत पर |
दोनों की पलकें झपकी हैं संग - संग |
जीतना किसे है , हार जाना है छत पर |
अच्छा जी अब उतरते हैं छत से |
कल इसी वक़्त वापस आना है छत पर |
"प्रवेश "
Bhanp le gr koi bechaini mann ki,
ReplyDeleteTOH sanjho koi diwana hai vhhat pr........
wah ! pravesh ji ! sunder ! ati sunder....
pahli baar aapke blomain aaya or chnd rachnayen padhi , achhi lagi...
blog ka prachar- prasaar kijiyega,,
bhakuni ji.. nakaskar... blog me aapka swagat hai.. blog ke prachar ka jimma to aap jaise mitron ke kandhon par hai...
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