वो कौन है !!
है नहीं दुश्मन अपिरिचित ,
परिचित ही उसकी चाल है |
फिर भी वार होता सीने पर ,
इस बात का मलाल है |
कौन खबरी है यहाँ ,
जो घर का देता भेद है !
खुद भी सवार है मगर ,
कश्ती में करता छेद है |
कोई तो है , दुश्मन के सिर पर ,
जिसका कृपामय हाथ है |
घर में घुस के मार दे ,
किसकी इतनी औकात है !
इतनी न हिम्मत करता , अगर
मिलता उसे प्रश्रय नहीं |
वो मौत बाँटता फिरता है ,
उसे मौत का भी भय नहीं |
वो जो भी है , निश्चय ही
सीने में उसके दिल नहीं |
इंसानियत का दुश्मन है ,
रिश्तों का भी कातिल वही |
ऐसा न हो कि बदल जायें
इंसानियत के मायने |
असली चेहरे भी कहाँ ,
अब दिखाते हैं आईने !!
"प्रवेश"
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