लकीरें
किस्मत का फैसला करती हैं
हाथों की लकीरें
और बदकिस्मती भी तय
ये लकीरें ही करती हैं |
दो हाथों की लकीरें
एक तक़दीर से खेलती हैं ,
कभी संवार देती हैं उसे
तो कभी बिगड़ देती हैं |
मगर दिलों में खिंची लकीरें
दरारें बन जाती हैं ,
और चौड़ी होकर दरारें
बन जाती हैं खाईयाँ |
खाई के दो हिस्से अगर
कोशिश भी करें मिलने की ,
और बड़ी खाईयाँ
बन जाती हैं नाकामी में |
और जब लकीरें खींचती हैं
दो मुल्कों के बीच
तो बदकिस्मती शुरू
हो जाती है आवाम की |
लकवा मार जाता है
दोनों ही मुल्कों को ,
होंठ कहते नहीं , कान सुनते नहीं ,
आँखों के सामने भी धुंधलका सा होता है |
बातें होतो हैं तो
सिर्फ तोपों और बंदूकों से ,
जिसमे झुलसकर दम
तोड़ देती है इंसानियत |
मगर खिंची हुई लकीर को
मिटाता नहीं कोई ,
एक बड़ी लकीर खींच देता है ,
पहली को छोटी करने को |
"प्रवेश "
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