काश !
बड़ी तकलीफ होती है
आज जब बेटा मुझसे
दो दूनी पूछता है और
मैं अपनी उँगली उसकी
माँ की तरफ कर देता हूँ |
कभी दस रुपये के सामन के
बीस भी दे आता हूँ |
बड़ी तकलीफ होती है
जब कलाई पर घडी होते हुए भी
दूसरों से समय पूछना पड़ता है |
लोगों के नाम के साथ - साथ
मोबाइल में मैंने उनकी
तस्वीर भी लगवा रखी है |
एक बटन दबाकर मुझे
गाना चलाना तो आता है ,
पर जो गाना बजता है
वही सुनना पड़ता है ,
क्योंकि मुझे गाना बदलना नहीं आता |
ठेकेदार मजदूरी के
जो भी रुपये देता है ,
चुपचाप थाम लेता हूँ ,
अगर गिन पाता तो
मजदूरी क्यों करता |
कभी समय निकालकर जब
दुकान पर बैठता हूँ ,
तो मेरा बेटा भी साथ जाता है ,
मैं पंक्चर निकालता हूँ और
वो हिसाब लगाता है |
मुझे याद है जब पिताजी
मुझे स्कूल छोड़ने जाते थे ,
मेरी तख्ती और दावात
खुद ही ले जाते थे ,
पर गिल्ली - डंडा,
गेंद - बल्ले के सिवाय कुछ
सूझे तो स्कूल में रुकें |
पिताजी ने प्रलोभन भी दिया
और डांट भी लगाई,
लेकिन मैं स्कूल की ओर
पीठ करके सोता था |
आज जब सर्वांग होते हुए भी
खुद को लाचार पाता हूँ ,
तब सोचता हूँ
काश ! मैंने पढ़ लिया होता |
"प्रवेश"
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