एक बेल
जो चढ़ नहीं सकती
बिना सहारे के
बरामदे से छत तक ,
एक बोतल में
जिंदगी गुजार देती है
बिना मिटटी के ,
दरवाजे पर बँधे
विदेशी नस्ल के
कुत्ते के साथ
जिसका मुँह फटा है
कान के पास तक,
आज मात देकर
चार बीघा जमीन में
लहलहाती फसल को
और बाड़े में बँधे
बैलों , गायों और
बकरियों को,
सम्पन्नता की
निशानी बनी बैठी है ।
" प्रवेश "
जो चढ़ नहीं सकती
बिना सहारे के
बरामदे से छत तक ,
एक बोतल में
जिंदगी गुजार देती है
बिना मिटटी के ,
दरवाजे पर बँधे
विदेशी नस्ल के
कुत्ते के साथ
जिसका मुँह फटा है
कान के पास तक,
आज मात देकर
चार बीघा जमीन में
लहलहाती फसल को
और बाड़े में बँधे
बैलों , गायों और
बकरियों को,
सम्पन्नता की
निशानी बनी बैठी है ।
" प्रवेश "
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