जोर नहीं !
अनजाने हम भी एक गुनाह कर बैठे |
जो दिल की कसक को आह कर बैठे ||
वो तो दोस्ती के काबिल भी न निकले |
और हम उन्हें हमराह कर बैठे ||
कभी चलते थे वो मेरे नक्श -ए- कदम पर |
आज वो हमें ही गुमराह कर बैठे ||
उन्हें सँवारने में हमने उम्र गुजार दी |
वो जिंदगी हमारी तबाह कर बैठे ||
हमारा ही जोर न चला कमबख्त दिल पर |
जो मोहब्बत उन्हें बेपनाह कर बैठे ||
अनजाने हम भी एक गुनाह कर बैठे |
जो दिल की कसक को आह कर बैठे ||
"प्रवेश "
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