Friday, November 25, 2011

उसे तो बस लिखना है |


उसे तो बस लिखना है |

बिजली के झूलते तारो पर 

तपती लू के अंगारों पर 

नदिया के बहते धारों पर 

उसे तो बस लिखना है |


पराजित या विजेता पर 

अच्छे या बुरे नेता पर 

मानवता के प्रणेता पर 

उसे तो बस लिखना है |


जनता के उठते हाथों पर 

जनता पर पड़ती लातों पर

सरकारी चुपड़ी बातों पर 

उसे तो बस लिखना है |


संसद के संवादों पर 

झूठे सरकारी वादों पर 

गुणों पर और अपवादों पर 

उसे तो बस लिखना है |


पेड़ों से लटकते झूलों पर 

कागज़ पर जमती धूलों पर 

आगे - पीछे की भूलों पर 

उसे तो बस लिखना है |


कुदरत के अद्भुत रंगों पर 

भूखे प्यासों और नंगों पर

पल - पल होते दंगों पर 

उसे तो बस लिखना है |


दीवानों की चाहत पर 

वफ़ा पर और बगावत पर 

टूटे और दिल आहत पर 

उसे तो बस लिखना है |


प्रेमीजन की बातों पर 

धवल चाँदनी रातों पर

खुशियों पर , सौगातों पर 

उसे तो बस लिखना है |


उस पर किसी का जोर नहीं 

उसकी सोच का कोई छोर नहीं 

वो पक्ष - विपक्ष की ओर नहीं 

वो कवि है , रिश्वतखोर नहीं

उसे तो बस लिखना है |


                                "प्रवेश "

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