जनता जागी है |
छोडो तख़्त - ओ- ताज को
अब सोती जनता जागी है |
ये नहीं तुम्हारी दासी है ,
आजादी की अनुरागी है |
गोरों ने छोड़ दिया भारत ,
बस इसे आजादी मत समझो |
कालों ने कब्ज़ा जमा लिया ,
ये बात बड़ी दुर्भागी है |
जनता ने बिठाया गद्दी पर ,
तुम सर्वेसर्वा बन बैठे |
ये भूल गए कि जनता भी ,
तुम लोगों की सहभागी है |
तुम तो महलों में बैठे हो ,
तुम्हें ठण्ड की खबर नहीं |
अकड़ती देहों से पूछो ,
कि कितनी सर्दी लागी है |
कुर्सी के मद में चूर हो ,
घोड़े बेचकर सोये हो |
नींद की कीमत उनसे पूछो ,
जिनकी निंदिया भागी है |
लजीज खाना खाते हैं ,
तुम्हारे घर के कुत्ते भी |
रोटी क्या ? नहीं जानते हैं ,
जिनके पेट में अगन लागी है |
धब्बे से दिखने लगे हैं ,
तुम्हारे सफ़ेद कुर्तों पर |
अब पहचान होने लगी है ,
कितनों की खादी दागी है |
छोडो तख़्त - ओ- ताज को
अब सोती जनता जागी है |
"प्रवेश "
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