क्या मैं जानता हूँ तुम्हे !
एक नाकाम सी कोशिश करता हूँ
तुम्हें समझने की ,
जानने की ,
जानने की ,
तुम्हें अच्छे से पहचानने की ,
कभी खुद ही
दावा करता हूँ
दावा करता हूँ
कि मैं जान चुका हूँ ,
पहचान चुका हूँ ,
तुम्हें दिल की गहराइयों से |
कुछ नहीं रह गया
अब जानने - समझने को ,
एक भ्रम सा होता है
कि मैं तुम्हें पहचान लेता हूँ
तुम्हारी आहट से ही ,
तुम्हारा चेहरा पढ़ लेता हूँ |
अगले ही पल
जाने क्यों
ऐसा लगता है
कि तुम अन्जान हो
मेरे लिये ,
बस एक मामूली सी
जान - पहचान है हमारी |
एक गुजारिश है तुमसे
दूर कर दो
मेरी कश्मकश को ,
कि "क्या मैं जानता हूँ तुम्हें !"
"प्रवेश "
ohh Pravesh.... kya baat
ReplyDeletebahaut hi badhiya likha hai tumne... dil ki kashmakash ko
niceee