मौसम का मिजाज !
कभी देखा है बदलते हुये मौसम का मिजाज !
नहीं अगर , तो कभी मेरे शहर में आइये |
इस तरह शाम ढले लुढ़कते हैं लोग ,
जैसे टेबल के कोने पे रखा , हिल जाये गिलास |
रोज ही लोग हलाल होते हैं बकरों की तरह ,
कौन रखता है भला इतनी लाशों का हिसाब |
बेआबरू होती हैं बेटियाँ , केले की तरह ,
जिस्म बिकते हैं सरेआम , कौड़ियों के हिसाब |
कभी देखा है बदलते हुये मौसमका मिजाज !!
"प्रवेश "
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