Saturday, August 27, 2011

क्यों बड़ा हो गया !


क्यों बड़ा हो गया !


कितने अच्छे दिन थे वो 

जब सच - झूठ का पता न था |

एहसास ख़ुशी - गम का न था ,

छाँव - धूप का पता न था |



जो भी होता , अच्छा होता ,

कुछ बुरा कभी होता न था |

रूह कभी दुखती न थी ,

मन कभी रोता न था |



रोने की वजह मालूम न थी |

हँसने का कारण पता न था ,

सब अपने थे, न पराया कोई ,

कभी राग - द्वेष में फंसा न था |



क्यों होश संभाला मैंने और 

क्यों लगा समझने खुशियाँ - गम |

क्यों घृणा - प्रेम के भाव जगे ,

क्यों समझ आया रहम - ओ- सितम |



क्यों चलने लगा दुनिया के संग ,

क्यों कन्धा मिलाकर खड़ा हो गया !

क्यों बचपन छोड़ गया मुझको ,

जाने क्यों मैं बड़ा हो गया !!

                                           "प्रवेश "

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