भरते ज़ख्मों को उधेड़ लेते हो
किसी के ज़ख्मों को सीने के क़ाबिल ना हुए
तुम समझते हो समंदर ख़ुद को
डुबो सकते हो मगर पीने के क़ाबिल ना हुए
दौलत कमा ली बहुत, आज भी तुम
सर उठाकर जीने के क़ाबिल ना हुए | ~प्रवेश~
किसी के ज़ख्मों को सीने के क़ाबिल ना हुए
तुम समझते हो समंदर ख़ुद को
डुबो सकते हो मगर पीने के क़ाबिल ना हुए
दौलत कमा ली बहुत, आज भी तुम
सर उठाकर जीने के क़ाबिल ना हुए | ~प्रवेश~
बहुत खूब
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