आईने के सामने
अभ्यास चल रहा है
कैसे छिपाना है
चेहरे का ताव ।
कैसे लाना है
सेवक का भाव ।
कैसे बदला जाए
बोलने का ढंग ।
कैसे चढ़ाया जाए
हमदर्दी का रंग ।
लगाया जा रहा है हिसाब
किसके सामने
कितना झुका जाय ।
किसके घर पर
कितना रुका जाय ।
कौन मान जायेगा
चुपड़ी बात से ।
कौन अपना लेगा
केवल जात से ।
किसको नोट देने हैं
किसकी कमजोरी दारू है ।
कौन अपना होकर भी
धोखा देने को उतारू है ।
अपनी गरज पर गधे को भी
पिता कहना उनका स्वभाव है ।
इस सारे नाटक का कारण
आने वाला चुनाव है। ~प्रवेश~
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