भूल कर रहे हो
कुर्सी को मोक्ष समझ रहे हो ।
मोक्ष नहीं है कुर्सी ,
एक दोराहा है ।
एक रास्ता स्वर्ग को
और दूसरा नरक को जाता है ।
एक पुण्य की ओर
और दूसरा पाप की ओर ले जाता है ।
तुम कुर्सी पर विराजमान हो ,
फैसला तुम्हारा ,
नरक को प्रस्थान या स्वर्ग को ?
कुर्सी ने तुम्हें जो शक्ति दी है
उससे तुम चाहो तो
आशीर्वाद और दुआएँ अर्जित कर लो
और चाहो तो श्राप और पाप ।
(सुना है कि कर्मों का फल
इसी जन्म में भुगतना होता है ,
फिर भी - कल किसने देखा !!)
" प्रवेश "
कुर्सी को मोक्ष समझ रहे हो ।
मोक्ष नहीं है कुर्सी ,
एक दोराहा है ।
एक रास्ता स्वर्ग को
और दूसरा नरक को जाता है ।
एक पुण्य की ओर
और दूसरा पाप की ओर ले जाता है ।
तुम कुर्सी पर विराजमान हो ,
फैसला तुम्हारा ,
नरक को प्रस्थान या स्वर्ग को ?
कुर्सी ने तुम्हें जो शक्ति दी है
उससे तुम चाहो तो
आशीर्वाद और दुआएँ अर्जित कर लो
और चाहो तो श्राप और पाप ।
(सुना है कि कर्मों का फल
इसी जन्म में भुगतना होता है ,
फिर भी - कल किसने देखा !!)
" प्रवेश "
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
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