एक काले धागे में
पिरोये हुये
चंद छोटे काले दानों
और बालों को पाटती हुई
लकीर में काढी गयी
एक रंग की रंगोली के बदले,
चुपचाप और स्तब्ध
सारी जिंदगी
मेहनत - मजदूरी करके ,
अपना पेट काटकर ,
पेट भरती रही
उसकी अय्याशियों का ।
आज मुँह खोला
और जमाने ने उसको
बदजबान कह दिया ।
" प्रवेश "
No comments:
Post a Comment