कौन - कब - कहाँ - कुछ कह रहा है !
कौन - कब - कहाँ - कुछ कह रहा है !
ह्रदय में कुछ भूसे सा जल रहा है ,
कोई फूल को पैरों तले कुचल रहा है ,
कोई तटस्थ हो देख रहा है शालीन होकर ,
कोई भींचकर मुट्ठी खुशियाँ मसल रहा है ।
कोई आँसुओं से तन -मन भिगोकर
मौन है , स्तम्भित खड़ा सब सह रहा है ।
किसी को दल की, किसी को पद की चिंता,
राष्ट्र दूजा , सबसे पहले कद की चिंता ,
जात ऊपर , इंसानियत औंधे पड़ी है ,
किसी को मंदिर और मस्जिद की चिंता ।
प्रेम का जो घर बना था नदी तीरे
द्वेष की प्रचंड बाढ़ से ढह रहा है ।
बदहाल है भूपुत्र , बेबस तप रहा है ,
धूप - बारिश - लू के थपेड़े खप रहा है ,
आस से नजरें गड़ाये है वो जिस पर
वो तो बस वादों की माला जप रहा है ।
धूप में निकला नहीं, क्या खबर उसको
कैसे स्वेद से मिलकर लहू भी बह रहा है ।
कौन - कब - कहाँ - कुछ कह रहा है !
" प्रवेश "
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