रोने लगी हिंदी
जागने लगे लोग , सोने लगी हिंदी ।
अंग्रेजी के जंगल में खोने लगी हिंदी ।।
अद्यतन दिखने की होड़ मचने लगी जब से ।
अपने घर में परायी होने लगी हिंदी ।।
हिंदी नहीं जानते तो नाक ऊँची होती है ।
जाने किस जनम का पाप ढ़ोने लगी हिंदी ।।
कभी माँ का दर्जा था , इज्जत से पूजी जाती थी ।
अब शराबी की लुगाई सी रोने लगी हिंदी ।।
सितम्बर आया तो मिली बिछड़े हुये अपनों से ।
फिर से हसींन सपने संजोने लगी हिंदी ।।
दादी के जन्मदिन सा हिंदी दिवस आया ।
जज्बातों के बवंडर में खोने लगी हिंदी ।।
अपने घर में परायी होने लगी हिंदी ।
अंग्रेजी के जंगल में खोने लगी हिंदी ।।
"प्रवेश "
जागने लगे लोग , सोने लगी हिंदी ।
अंग्रेजी के जंगल में खोने लगी हिंदी ।।
अद्यतन दिखने की होड़ मचने लगी जब से ।
अपने घर में परायी होने लगी हिंदी ।।
हिंदी नहीं जानते तो नाक ऊँची होती है ।
जाने किस जनम का पाप ढ़ोने लगी हिंदी ।।
कभी माँ का दर्जा था , इज्जत से पूजी जाती थी ।
अब शराबी की लुगाई सी रोने लगी हिंदी ।।
सितम्बर आया तो मिली बिछड़े हुये अपनों से ।
फिर से हसींन सपने संजोने लगी हिंदी ।।
दादी के जन्मदिन सा हिंदी दिवस आया ।
जज्बातों के बवंडर में खोने लगी हिंदी ।।
अपने घर में परायी होने लगी हिंदी ।
अंग्रेजी के जंगल में खोने लगी हिंदी ।।
"प्रवेश "
आभार मान्यवर शास्त्री जी..आपको भी हिंदी दिवस की हार्दिक बधाइयाँ |
ReplyDeleteमित्र अच्छा प्रयास .......सुन्दर ,बधाईयाँ जी .....
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