अब गाँव चलूँ
शहर सुहाता नहीं , अब गाँव चलूँ ,
धुआँ सहा जाता नहीं , अब गाँव चलूँ ।
सीधे - सुल्टे पैर हैं भूतों के यहाँ ,
ये तबका खौफ तो खाता नहीं , अब गाँव चलूँ ।
कभी देखा ना जो , दिखते हैं अब ऐसे मंजर ,
नजारा कोई भाता नहीं , अब गाँव चलूँ ।
बहुत भीड़ है सड़कों पे , सूना है शहर ,
सुकून दिल कहीं पाता नहीं , अब गाँव चलूँ ।
ज़माने के साथ बदलो , बच्चे कहते हैं ,
मैं खुद को बदल पाता नहीं , अब गाँव चलूँ ।
प्रवेश
बहुत संदर रचना .... अब गाँव चलूं
ReplyDeletesach jamane ke sath sabhi nahi badal jaate... apni mitti se jo gahra juda rahta hai, uske liye shahar ki bheed-bhaad bhi sunsan jangal hai...
ReplyDeletegaon aur shahar ke halaton ka sundar sajeev chitran..
gaon mujhe behad bhaate hain... saal mein 1-2 baar jaati hun lekin dil masoskar aana hi padta hai..