"तुम्हारे नाम से "
आधी छुट्टी में
मेरे बस्ते से
चित्रकला की कॉपी निकालकर
तुमने उसके आखिरी पन्ने पर
बनाया था जो गुलाबी पान का पत्ता
ऐसा लग रहा था
जैसे बिना पत्तियों की शलजम
रख दी हो
अधकटी मूल जड़ के साथ ।
मैं हँसा था और
मजाक बनाया था
तुम्हारी चित्रकारी का,
पूछने पर तुमने बताया था
कि दिल है तुम्हारा ।
मुझे संदेह हुआ था
तुम्हारी बात पर नहीं
विज्ञान की किताब पर ,
इकाई छः
'श्वसन तंत्र ' ।
गोश्त के एक टुकड़े के समान
मानव ह्रदय का चित्र था
अनेक भागों के साथ ।
तुम्हारा दिल तो एकदम अलग ,
न आलिंद न निलय
बस एक दिल ही था
सम्पूर्ण
बिना किसी भाग के ।
मेरा सवाल
"आखिर ये काम कैसे करता है ?
ये कैसे धड़कता है ?"
और तुम्हारा वो जवाब
जो मुझे निष्प्रश्न सा कर गया
"तुम्हारे नाम से "
मुझे याद है आज भी ।
प्रवेश
bahut Sundar Hai, Dil ko Touch Karne waliii....
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