जरा संभल के !
ऐ भोली - भाली चींटियों !
जरा संभल के,
यूं बेधड़क
पार न किया करो
इस रास्ते को,
बरामदे में भी
एक किनारा पकड़ लो
अपने आने - जाने के लिये |
माना कि
तुम्हारा भी हक है
बेरोक - टोक
सीना ताने
इस रास्ते पर चलने का ,
मगर तनिक खयाल रखो
अपने छोटे कद का
और कतई न भूलो
इस बात को कि
यहाँ हर कोई
नजरें झुकाकर नहीं चलता,
हर एक की नजर
जमीन पर नहीं है |
"प्रवेश "
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