धर यमराज भेष, फैली है देस - बिदेस, कोरोना के रूप में मुसीबत बड़ी आयी है।
विषम समय - काल, थमी है जीवन की चाल, आज मानवता की परीक्षा की घड़ी आयी है।
आत्मनियंत्रण - संयम - सावधानी को परखने मनुज पे दुःखों की झड़ी आयी है।
जैसे बीता अच्छा कल, बीत जायेगा ये पल, मानव जाति कई विपदाओं से लड़ी आयी है।
जंगलों को काट के शहर बसाने के बाद, प्राणवायु के लिए तरसता है आदमी।
त्याग दिये गाँव, त्यागी पीपल की छाँव, किवाड़ बंद घरों में अब बसता है आदमी।
वाणी से विषधर बन, उठा के जहरीला फ़न, आदमी को आदमी संग डँसता है आदमी।
घूमे पगलाया सा, बौराया मारा - मारा फिरे, लाशों के अम्बार पर हँसता है आदमी।
जाग रे मनुज जाग, फिर से जगेंगे भाग, रख अपने आस - पास प्रकृति को संवार कर।
करता है जितना तू निज संतति से नेह, पेड़ - पौंधों से भी प्यारे उतना ही प्यार कर।
जितना कमाया यहाँ, उतना चुकाना भी है, लालच में पड़कर न साँसों का व्यापार कर।
अब भी समय है, तू चाहे तो संभल जा, या चुपचाप अपनी बारी का इंतजार कर। ~ प्रवेश ~
बहुत सुंदर
ReplyDelete