घर के बाहर मौत खड़ी है
कठिन परीक्षा की ये घड़ी है ।।
पैरों में जो पड़ी है बेड़ी
हीरे - मोतियों से जड़ी है।।
पेट कहे ये दौर है मुश्किल
सिर को बस नाम की पड़ी है।।
होने को उम्मीद बहुत है
मगर भूख से कहाँ बड़ी है।।
आने वाला घर लौटेगा
पटरी अभी नहीं उखड़ी है।।
मुझको उस पर ऐतबार है
उसने मुश्किल जंग लड़ी है।। ~प्रवेश~
बहुत खूब
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