Sunday, May 12, 2024

बड़े आए हैं मदर्स डे वाले

 बड़े आए हैं 

मदर्स डे वाले


तुझे फुरसत न हो 

तो कोई बात नहीं 

जब वो करे तो

उसका फोन उठा ले


तू पैंसे भेजकर 

फर्ज़ अदा समझता है

कभी पूछ ले- माँ

कैसे हैं पाँव के छाले


तुझे छुट्टी नहीं मिलती

कि तू उसके पास जाकर रह

अपने घर में जगह बना

उसे पास बुला ले


बड़े आए हैं 

मदर्स डे वाले 

~प्रवेश~

Tuesday, April 23, 2024

बदलाव

 तब 

जबकि डॉक्टर भी दे चुके हों जवाब 

और तुमने होश न खोया हो, 

खुद से करना एक सवाल 

कि यदि डॉक्टर बदल दे जवाब 

तो तुम खुद को कितना बदलोगे !!

~ प्रवेश ~ 

Wednesday, October 5, 2022

छोटी सी कविता - साँझ ढले

साँझ हुई 
मेहमान आये,
भेज दिया बेटा   
मुर्गा लाने को। 
परन्तु भेज न सके उसको 
क्यारी से धनिया लाने,
क्योंकि 
साँझ ढले 
पौंधों को छेड़ा नहीं करते। ~ प्रवेश ~ 

छोटी सी कविता - दौड़

हर माता - पिता चाहते हैं 

उनकी संतान  आगे निकले 

हर दौड़ में उनसे, 

सिवाय एक दौड़ के 

दुनिया छोड़ने की दौड़ !! ~ प्रवेश  ~   


Friday, July 15, 2022

जीवन ने दोनों सिखलाया
रोना भी - मुस्काना भी
बाधाओं से लड़ते जाना
हँस - हँस ग़म पी जाना भी ।

जीवन ने दोनों सिखलाया 
अपना भी - पराया भी 
मोह के बंधन तोड़ के उड़ना 
घेर के लाये माया भी। 

जीवन ने ये भी सिखलाया 
समय तेरा तो सब तेरे 
तेरा समय गुज़र जाये तो 
साथ न देगा साया भी। ~ प्रवेश ~ 


Tuesday, September 28, 2021

सूर्यदेव का दोष


सड़क जो बनी बरसात के बाद
रही साल भर चकाचक
खूब बटोरी वाहवाही
अगली बारिश आने तक।

अब फिर से बारिश आयी है
अपने संग जाने क्या लायी है
तारकोल से कंकड़ बिछड़ गए
कंकड़ -कंकड़ छितरायी है।

जो सड़क धूप में सही रही
बारिश आने पर टूटी है
ऐसा प्रकृति ने कोप किया
जनता की किस्मत फूटी है।

ठेकेदार - नेता के ऊपर
जनता का अकारण रोष है
सड़क टूटने में सारा
सूर्यदेव का दोष है।

न तपता सूरज तेजी से
न भाप समंदर से उठती
न बादल बनते- वर्षा होती
न बारिश में सड़क लुटती। ~प्रवेश~

Thursday, July 15, 2021

जैसा हूँ वैसा रहने दो

जैसा हूँ वैसा रहने दो।
मुझको मुझ जैसा रहने दो।।  

तुम सा तो मैं हो न सकूंगा।
अपना मशविरा रहने दो।। 

दर्द का सबब भूल न जाऊँ। 
घाव अभी हरा रहने दो।।

असल चेहरे दिख जायेंगे। 
अँधेरा कमरा रहने दो।।

जागेगा तो चीख़ उठेगा। 
सोया है सोया रहने दो।।

खुशियों से हम मर जायेंगे। 
थोड़ा और ज़िन्दा रहने दो।।~ प्रवेश ~ 

Thursday, May 13, 2021

धर यमराज भेष, फैली है देस - बिदेस, कोरोना के रूप में मुसीबत बड़ी आयी है। 

विषम समय - काल, थमी है जीवन की चाल, आज मानवता की परीक्षा की  घड़ी आयी है। 

आत्मनियंत्रण - संयम - सावधानी को परखने मनुज पे दुःखों की झड़ी आयी है। 

जैसे बीता अच्छा कल, बीत जायेगा ये पल, मानव जाति कई विपदाओं से लड़ी आयी है। 


जंगलों को काट के शहर बसाने के बाद, प्राणवायु के लिए तरसता है आदमी। 

त्याग दिये गाँव, त्यागी पीपल की छाँव, किवाड़ बंद घरों में अब बसता है आदमी। 

वाणी से विषधर बन, उठा के जहरीला फ़न, आदमी को आदमी संग डँसता है आदमी। 

घूमे पगलाया सा, बौराया मारा - मारा फिरे, लाशों के अम्बार पर हँसता है आदमी। 


जाग रे मनुज जाग, फिर से जगेंगे भाग, रख अपने आस - पास प्रकृति को संवार कर। 

करता है जितना तू निज संतति से नेह, पेड़ - पौंधों से भी प्यारे उतना ही प्यार कर। 

जितना कमाया यहाँ, उतना चुकाना भी है, लालच में पड़कर न साँसों का व्यापार कर। 

अब भी समय है, तू चाहे तो संभल जा, या चुपचाप अपनी बारी का इंतजार कर।  ~ प्रवेश ~ 




Wednesday, August 26, 2020

ऐ माटी मेरे गाँव की

ऐ माटी मेरे गाँव की 
तू मुझे बुला ले पास तेरे 
करूँ कैसे बयां कि हैं कैसे जुड़े 
तेरे संग अहसास मेरे।  

मेरी उँगली पकड़ मुझे लेकर चल 
मेरे खेतों में खलिहानों में 
जहाँ ठण्डी पवन सौंधी खुशबू 
भर दे मेरी इन साँसों में। 

तूने पाला मुझे तूने प्यार दिया 
इन हाथों को कुछ काम भी दे 
तेरे पास ही रोजी चलती रहे तो 
तेरा बेटा शहर का नाम न ले। 

मुझे तेरी कसम  मेरा प्यार है तू 
ये शहर मुझे नहीं भाता है 
 मैं रहना चाहूँ पास तेरे 
यहाँ दम सा घुटा मेरा जाता है। 

मैं करूँ दुआ वापस लौटूं 
मेरे गॉंव की ओर कदम निकले
जब तक मैं जियूँ तेरे पास जियूं 
तेरी गोद में मेरा दम निकले। ~ प्रवेश ~ 




Thursday, June 4, 2020

एडमिन

आदमी न 

ए डी एम आई आदमी एन न 
अर्थात
आदमी नहीं है एडमिन
अपितु आदमी से अलग
साधारण मनुष्य से
कहीं ऊपर उठ चुका
एक देवांश है एडमिन |
एडमिन एक शक्ति पुंज है
जिसमें निहित हैं
समूह की सभी शक्तियां
समूह के विस्तार की शक्तियां
समूह के संचालन की शक्तियां
शक्तियां समूह को मर्यादित रखने की
और समूह के विघटन की शक्तियां |
सोशल मीडिया ग्रुप रूपी बारात में
दूल्हे का पिता है एडमिन
जिसको सबकी सुननी है
सबकी माननी है
जिसको मनाना है रूठे फूफे को
हर एक को खुश रखना है |
एडमिन चाहे कुछ भी हो
मगर मेंबर्स से बड़ा नहीं है एडमिन
मेंबर्स से ही बना है एडमिन
यदि मेंबर्स नहीं तो क्या है एडमिन !! ~ प्रवेश ~





Saturday, April 25, 2020

घर के बाहर मौत खड़ी है

घर के बाहर मौत खड़ी है
कठिन परीक्षा की ये घड़ी है ।।

पैरों में जो पड़ी है बेड़ी 
हीरे - मोतियों से जड़ी है।।

पेट कहे ये दौर है मुश्किल
सिर को बस नाम की पड़ी है।।

होने को उम्मीद बहुत है
मगर भूख से कहाँ बड़ी है।।

आने वाला घर लौटेगा 
पटरी अभी नहीं उखड़ी है।।

मुझको उस पर ऐतबार है
उसने मुश्किल जंग लड़ी है।। ~प्रवेश~

Tuesday, April 14, 2020

हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है


हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है
जब रुक गया संसार में मानव का मानव से मिलन
तब कर रहे तुम अनवरत निज कर्तव्य का निर्वहन
जब स्वयं के तन को छूने पर भी लग गया हो बंधन
तब कर रहे तुम रुग्ण जन का मुक्त हृदय से आलिंगन
तुम्हारा सेवा भाव निःस्वार्थ है निष्काम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है |

अज्ञात है जब शत्रु तब भी मोह निज का त्यागकर
तुम लड़ रहे मैदान में बिन थके निरन्तर जागकर
साधारण मनुज होता तो कब का चला जाता भागकर
करके कोई झूठा बहाना लम्बी छुट्टी मांगकर
तुम्हें तो कर्तव्य पथ पर बढ़ते जाना अविराम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है |

हम हृदय से ऋणी हैं, हम आप के कृतज्ञ हैं
ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें, जो आपसे अनभिज्ञ हैं
हे देवों के अंश आप स्वयं ही मर्मज्ञ हैं
कोई माने या न माने राम तो सर्वज्ञ हैं
जगत का कल्याण करने आप सब में राम है
हे अघोषित युद्ध के वीरो तुम्हें प्रणाम है | ~ प्रवेश ~

Monday, April 13, 2020

जो डर गया - समझो बच गया

वो जो बच जाएंगे
इस तूफ़ान के गुजर जाने के बाद
इसके किस्से सुनाएंगे
अपनी आने वाली नस्लों को
कि कैसे मिट गए
किसी की ना सुनने वाले
किसी की ना मानने वाले
कैसे टूट गए वो दरख़्त
जो तने रहे अपनी अकड़ में
और तेज़ हवा से जमींदोज हो गए
उनसे पूछेंगे बच्चे
दादा तुम कैसे बचे
तो उनके पास मौका होगा
खुद की तारीफ़ करने का
खुद के गाल बजाने का
जबकि उन्होंने कुछ किया ही नहीं
सिर्फ घर में रहे
डरकर रहे - डटकर रहे
और झूठी साबित कर दी
गब्बर सिंह की बात
अब नया किस्सा होगा
जो डर गया - समझो बच गया | ~ प्रवेश ~