मैं जानता हूँ
कि अक्सर ऐसा नहीं होता
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
जिंदगी आसान हो जायेगी ।
मैं जानता हूँ
वक़्त ग़ुलाम नहीं किसी का
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मैं वक़्त को थाम लूँगा |
मैं जानता हूँ
जवानी सदा नहीं रहती
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मुझे बुढ़ापा नहीं आएगा |
मैं जानता हूँ
ज़रूरतें कभी ख़त्म नहीं होतीं
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मुझे किसी की ज़रूरत नहीं रहेगी | ~ प्रवेश ~
कि अक्सर ऐसा नहीं होता
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
जिंदगी आसान हो जायेगी ।
मैं जानता हूँ
वक़्त ग़ुलाम नहीं किसी का
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मैं वक़्त को थाम लूँगा |
मैं जानता हूँ
जवानी सदा नहीं रहती
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मुझे बुढ़ापा नहीं आएगा |
मैं जानता हूँ
ज़रूरतें कभी ख़त्म नहीं होतीं
फिर भी
मुझे ऐसा लगता है
कि तेरा साथ होने भर से
मुझे किसी की ज़रूरत नहीं रहेगी | ~ प्रवेश ~
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-06-2018) को "उपहार" (चर्चा अंक-3012) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया
Deleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 26/06/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
सराहना हेतु धन्यवाद महोदय
Deleteवाह बहुत खूबसूरत विचार।
ReplyDeleteसुंदर रचना, तेरा साथ होने भर से
धन्यवाद महोदया
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteसच है किसी का साथ एक और एक ग्यारह का आभास तो दे ही जाता है ...
सुन्दर रचना है ...